हरेला का महत्व (लोक सांस्कृतिक पर्व )

आज दिनांक 17/07/2023 को ऋषिकेश के सामुदायिक रेडियो स्टेशन “(रेडियो ऋषिकेश 90.0 FM)” में हरेला पर्व के उपलक्ष में उत्तराखंड के लोक सांस्कृतिक पर्व पर ख़ास प्रस्तुति श्रीमती कृष्णा रावत डोभाल जी के साथ। आज हरेला पर के उपलक्ष्य में बताया कि हरेला पर्व क्या है? हरेला पर्व एक लोक सांस्कृतिक त्यौहार है जो मूल रूप से उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में मनाया जाता है । हरेला पर्व वैसे तो वर्ष में तीन बार आता है-
1- चैत्र माह में – प्रथम दिन बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है।
2- श्रावण माह में – सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है।
3- आश्विन माह में – आश्विन माह में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है।
चैत्र व आश्विन माह में बोया जाने वाला हरेला मौसम के बदलाव के सूचक है।

चैत्र माह में बोया/काटा जाने वाला हरेला गर्मी के आने की सूचना देता है,
तो आश्विन माह की नवरात्रि में बोया जाने वाला हरेला सर्दी के आने की सूचना देता है।

लेकिन श्रावण माह में मनाये जाने वाला हरेला सामाजिक रूप से अपना विशेष महत्व रखता तथा समूचे कुमाऊँ में अति महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना जाता है। जिस कारण इस अन्चल में यह त्यौहार अधिक धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जैसाकि हम सभी को विदित है कि श्रावण माह भगवान भोलेशंकर का प्रिय माह है, इसलिए हरेले के इस पर्व को कही कही हर-काली के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि श्रावण माह शंकर भगवान जी को विशेष प्रिय है। यह तो सर्वविदित ही है कि उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है और पहाड़ों पर ही भगवान शंकर का वास माना जाता है। इसलिए भी उत्तराखण्ड में श्रावण माह में पड़ने वाले हरेला का अधिक महत्व है। हरियाली या हरेला शब्द पर्यावरण के काफी करीब है। ऐसे में इस दिन सांस्कृतिक आयोजन के साथ ही पौधारोपण भी किया जाता है। जिसमें लोग अपने परिवेश में विभिन्न प्रकार के छायादार व फलदार पौधे रोपते हैं।
आप सभी को लोक पर्व हरेला की हार्दिक शुभकामनाएँ |

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