कर्फ़्यू. इंटरनेट बंद… और सड़क के बीच पड़ी एक जली हुई गाड़ी.
क़रीब डेढ़ साल पहले पाँच मई की बात है. हम मणिपुर की राजधानी इंफ़ाल पहुँचे थे. हवाई अड्डे से बाहर निकलते ही हमारे सामने यही नज़ारा था. कर्फ़्यू. इंटरनेट बंद, और सड़क के बीच पड़ी एक जली हुई गाड़ी| डेढ़ साल बाद भी इंफाल का नज़ारा यही था|
तीन मई 2023 को राज्य में कुकी और मैतेई समुदायों के बीच हिंसा शुरू हुई थी. इस हिंसा में अब तक 258 लोगों की मौत हो चुकी है. हज़ारों की तादाद में लोग विस्थापित हुए हैं. यही नहीं, दोनों समुदायों के बीच अविश्वास की खाई और गहरी होती दिखी है.
हालिया हिंसा क्यों हुई?
हालिया हिंसा की शुरुआत सात नवंबर को हुई. उस दिन मणिपुर के जिरीबाम ज़िले में हथियारबंद चरमपंथियों ने एक आदिवासी महिला को गोली मारने के बाद कथित तौर पर जला दिया था. आरोप लगाया गया कि ये हमलावर मैतेई समुदाय के थे.
इसके चार दिन बाद 11 नवंबर को जिरीबाम में एक राहत शिविर पर हमला हुआ. इसके बाद उस शिविर से तीन महिलाएँ और तीन बच्चे लापता हो गए. ये सभी लोग मैतेई समुदाय के थे. ग्यारह नवंबर को ही जिरीबाम में सुरक्षाबलों ने 10 हथियारबंद लोगों को मार दिया. सरकार ने कहा कि ये सभी लोग आतंकवादी थे. कुछ ही दिन बाद 16 नवंबर को एक ख़बर फैलनी शुरू हुई. ख़बर ये थी कि जिरीबाम ज़िले के राहत शिविर से 11 नवंबर को लापता हुए छह लोगों के शव असम से लगती सीमा पर एक नदी से बरामद किए गए. शवों के बरामद होने की ख़बरें आने के बाद इंफाल में लोग सड़कों पर उतर आए. विरोध प्रदर्शन करने लगे. धीरे-धीरे ये प्रदर्शन उग्र होने लगे. इंफाल में कई जगह ग़ुस्साए लोगों की भीड़ ने स्थानीय विधायकों के घरों को निशाना बनाया. इसके बाद इंफाल और कई इलाक़ों में कर्फ़्यू लगा दिया गया. इंटरनेट सेवाएँ बंद कर दी गईं. इन सबको देखते हुए पिछले कुछ दिनों में केंद्र सरकार ने मणिपुर में क़रीब नौ हज़ार अतिरिक्त सुरक्षा बल भेजने का फ़ैसला किया है. 19 नवंबर को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने कहा कि तीन महिलाओं और तीन बच्चों की हत्या ‘कुकी आतंकवादियों’ ने की है और दोषियों की तलाश जारी है.
विधायकों के घरों पर हिंसा
हम इंफाल में भारतीय जनता पार्टी के पटसोइ से विधायक सपम कुंजकेश्वर सिंह के घर गए. यहाँ 16 नवंबर की शाम एक बड़ी भीड़ ने तोड़फोड़ की. उस हिंसा के निशान वहाँ अब भी देखे जा सकते थे. उनके घर के ठीक बाहर सड़क पर एक जली हुई गाड़ी मौजूद थी. वहाँ मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने हमें बताया कि उस शाम सैकड़ों लोगों की भीड़ विधायक के घर में घुसी. उस गाड़ी को विधायक के घर से बाहर निकाला और बीच सड़क पर जला दिया. इस भीड़ ने घर के गेट के अंदर खड़ी पुलिस की गाड़ियों को तोड़ा. फिर विधायक के घर को निशाना बनाया. सपम कुंजकेश्वर सिंह के घर के लॉन में दर्जनों गमले, घर के शीशे और फ़र्नीचर टूटे हुए पड़े थे. इस हमले के वक़्त सपम कुंजकेश्वर सिंह अपने घर पर ही मौजूद थे. उनके सुरक्षाकर्मी उन्हें किसी भी शारीरिक नुक़सान से बचाने में क़ामयाब रहे. हालाँकि, उनके घर पर उस वक़्त तैनात मणिपुर राइफ़ल्स की छोटी सी टुकड़ी, उस उग्र भीड़ को उनके घर में घुसने और तोड़फोड़ करने से नहीं रोक सकी. रात होते-होते विधायक के घर के बाहर केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल की एक सशस्त्र टुकड़ी तैनात कर दी गई.
यहाँ से कुछ ही दूरी पर मणिपुर सरकार में मंत्री और खुरई से भारतीय जनता पार्टी के विधायक लेइशांगथेम सुसिन्द्रो मैतेई के घर पर भी उसी शाम एक भीड़ ने पथराव किया. उस वक़्त वहाँ तैनात सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़) के कर्मियों ने हवा में फ़ायरिंग कर भीड़ को तितर-बितर करने की कोशिश की. जब हम विधायक के घर पहुँचे, तो उनके घर के टूटे हुए शीशे नज़र आए. साथ ही हमने देखा कि 16 नवंबर की घटना के बाद उनके घर की क़िलाबंदी कर दी गई है. उनके घर के बाहर लोहे का एक बड़ा गेट लगा था. कंटीली तारें थीं. बीएसएफ़ का हथियारबंद मोर्चा भी दिखाई दिया. सुरक्षाकर्मियों ने हमें बताया कि बीएसएफ़ का एक जवान उस शाम की हिंसा में घायल हुआ. वह फ़िलहाल अस्पताल में है. विधायक ने कैमरे के सामने बात करने इनकार कर दिया. हालाँकि, उन्होंने बिना कैमरे के बातचीत की. उन्होंने कहा कि जो लोग उनके घर पर हमला करने आए थे, वे असल में प्रदर्शनकारी नहीं थे. उनका मक़सद मणिपुर के मौजूदा संकट में आग में घी डालने का था. लेइशांगथेम सुसिन्द्रो मैतेई ने हमें बताया कि भीड़ में कई लोग इलेक्ट्रिक ड्रिल और हथौड़े लेकर आए थे. उनका इरादा उनके घर में आगज़नी और लूटपाट करने का था. इस घटना के वक़्त विधायक अपने घर पर मौजूद नहीं थे. उन्होंने कहा कि 16 नवंबर को दिन भर उनके घर पर स्थानीय महिलाएँ और वृद्ध आते रहे. उनके परिवार से बात कर लौटते रहे. शाम होते-होते सैकड़ों की भीड़ उनके घर के आसपास जुटने लगी. इसके बाद हिंसा शुरू हो गई. उपलब्ध जानकारी के मुताबिक़ उस शाम क़रीब दर्जन भर विधायकों के घरों पर हिंसक घटनाएँ हुईं. इनमें से ज़्यादातर विधायक भारतीय जनता पार्टी के थे. राज्य सरकार ने इन घटनाओं की जाँच के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है. सरकार ने कहा है कि दोषियों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी.
चुराचाँदपुर पहुँचना हुआ और मुश्किल
हमने इंफाल से चुराचाँदपुर का रुख़ किया. वही चुराचाँदपुर, जहाँ पिछले साल तीन मई को कुकी और मैतेई समुदायों के बीच हिंसा शुरू हुई. जिसने धीरे-धीरे पूरे राज्य को अपने आगोश में ले लिया. चुराचाँदपुर इंफाल से क़रीब 60 किलोमीटर की दूरी पर है. जहाँ इंफाल घाटी एक मैतेई-बहुत इलाक़ा है, वहीं चुराचाँदपुर कुकी बहुल है. इंफाल और चुराचाँदपुर के बीच बिष्णुपुर इलाक़ा है. पिछले साल की हिंसा के बाद इसे ‘बफ़र ज़ोन’ बना दिया गया है. यहाँ भारतीय सेना की भारी तैनाती है. इंफाल से चुराचाँदपुर या चुराचाँदपुर से इंफाल जाना अब आसान नहीं है. बिष्णुपुर के ‘बफर ज़ोन’ में बहुत कम फ़ासले पर कई चेक-पोस्ट बना दिए गए हैं. इनमें से हर एक पर आने-जाने वालों को अपना ब्योरा दर्ज कराना अनिवार्य है. पिछले साल सिर्फ़ अपना ब्योरा दर्ज करवा कर इन चेक-पोस्ट को पार किया जा सकता था. लेकिन इस बार पहले ही चेक-पोस्ट पर हमें रोक कर पूछा गया कि क्या हमारे पास चुराचाँदपुर जाने की इजाज़त है? यहाँ तैनात सुरक्षाबलों ने हमें चेक-पोस्ट की फ़ोटो लेने या वीडियो बनाने से मना किया. साथ ही ये जानना चाहा कि हम चुराचाँदपुर क्यों जा रहे हैं? वहाँ किस से मिलेंगे? क्या काम करेंगे? जब हमने इन सब सवालों की वजह जाननी चाही, तो एक सुरक्षाकर्मी ने कहा, “हालात ख़राब हैं. कभी भी कुछ भी हो सकता है.” अपने वरिष्ठ अधिकारियों से कई बार फ़ोन पर बात करने के क़रीब आधे घंटे बाद उन्होंने हमें चुराचाँदपुर की तरफ़ बढ़ने की इजाज़त दी. इजाज़त देने वाले सुरक्षाकर्मी ने कहा, “ये याद रखिए कि आप अपनी ज़िम्मेदारी पर जा रहे हैं. आपकी सुरक्षा के लिए आप ख़ुद ज़िम्मेदार होंगे.”
चुराचाँदपुर में तनाव और असंतोष
चुराचाँदपुर पहुँचते ही हालात ऊपर से तो सामान्य दिखे, लेकिन इस ऊपरी परत के नीचे छिपे तनाव को महसूस करने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगा. कई जगह बड़े-बड़े बैनरों पर उन 10 लोगों की तस्वीरें दिखाई दीं, जो 11 नवंबर को जिरीबाम ज़िले में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए थे. बताया जा रहा है कि इन 10 लोगों में से आठ चुराचाँदपुर के रहने वाले थे. मणिपुर सरकार का कहना है कि ये लोग ‘आतंकवादी’ थे. इन्होंने जिरीबाम के बोरोबेकरा इलाक़े में एक राहत शिविर में रह रहे लोगों और बोरोबेकरा के पुलिस स्टेशन पर 11 नवंबर को हमला किया था. मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह का कहना था, “उनका उद्देश्य भय और विनाश फैलाना था. हालाँकि, वहाँ तैनात सीआरपीएफ़ कर्मियों की समय पर की गई निर्णायक प्रतिक्रिया के कारण हमले को विफल कर दिया गया.” उन्होंने कहा, “उनकी बहादुरी और त्वरित कार्रवाई ने उन 10 आतंकवादियों को मौक़े पर ही मार दिया. इससे राहत शिविर में रह रहे सैकड़ों निर्दोष लोगों की जान बच गई.” लेकिन चुराचाँदपुर के लोग कह रहे हैं कि ये सभी विलेज वॉलंटियर थे. वे अपने समुदाय के लोगों की रक्षा के लिए जिरीबाम गए थे.
आपको याद दिला दें कि पिछले साल जब कुकी और मैतेई समुदायों के बीच हिंसा शुरू हुई, तो दोनों ही पक्षों ने अपने गाँवों की सुरक्षा के लिए हथियारबंद गुट तैनात कर दिए थे. तब से राज्य भर में इन सशस्त्र समूहों से जुड़ी कई हिंसक घटनाएँ सामने आई हैं. हम कुछ मृतकों के परिवार वालों से मिले. मारे गए लालथानेयी इन्फ़ीमाते सिर्फ़ 22 साल के थे. उनके परिवार का कहना है कि वे पेंटर और कंस्ट्रक्शन वर्कर थे. उनके बड़े भाई राममासुओं को अब तक यक़ीन नहीं है कि उनका छोटा भाई अब इस दुनिया में नहीं है. उन्होंने कहा, “आँख बंद करता हूँ तो उसकी शक़्ल याद आ जाती है. जो 10 लोग अभी मरे हैं, उसमें कोई मिलिटेंट नहीं है. पुलिस ने बोला उग्रवादी हैं. ये एकदम ग़लत है. उग्रवादी नहीं हैं वे लोग.” राममासुओं का कहना है कि लालथानेयी इन्फ़ीमाते विलेज वॉलंटियर के तौर पर जिरीबाम गए थे. उन्होंने कहा, “जब मणिपुर में संकट हुआ, तभी से हर गाँव में सभी लोग वॉलंटियर बन कर रहते हैं. इन्हें अपना घर, अपना गाँव बचाने के लिए वॉलंटियर बनना पड़ रहा है.” “सब ग़रीब आदमी हैं. बड़े ख़ानदान का कोई भी नहीं है. हर रोज़ काम करके खाने वाले आदमी हैं. इन लोगों के साथ जो हुआ है, वह बहुत ग़लत हुआ है.”
इस घर से कुछ ही दूरी पर एक और घर में मातम छाया हुआ था. बार्था की अपने बेटे जोज़फ से आख़िरी बार 10 नवंबर को बात हुई थी. अगले दिन उन्हें पता चला कि उनका 20 साल का बेटा जिरीबाम में मारा गया है. बार्था ने कहा, “मेरा बेटा विलेज वॉलंटियर के तौर पर अपने लोगों की सुरक्षा के लिए गया था. सब लोग कह रहे हैं कि वह उग्रवादी था. सरकार से मेरी दरख़्वास्त है कि जो लोग मरे हैं, उन्हें उग्रवादी न कहा जाए.” जोज़फ लालदितुम ख़ोबुंग के परिवार का कहना है कि वे 10वीं कक्षा की पढ़ाई कर रहे थे. साथ ही ड्राइवर का काम भी सीख रहे थे. उनकी माँ बार्था कहती हैं, “हम भारत के नागरिक हैं. कोई विदेशी नहीं हैं. हम उग्रवादी नहीं हैं. हम बाहर से नहीं आए हैं. हमें भी सब की तरह समान अधिकार होने चाहिए. न्याय मिलना चाहिए.” ग्यारह नवंबर को जिरीबाम में मरने वाले ये सभी 10 लोग मार समुदाय से हैं. इनकी मौत के बाद से चुराचाँदपुर में तनाव है. इन 10 लोगों के शवों को चुराचाँदपुर के ज़िला अस्पताल के शव-गृह में रखा गया है. मृतकों के परिवार वाले और मार समुदाय के लोग इस बात का इंतज़ार कर रहे हैं कि ये शव उन्हें सौंप दिए जाएँ. मार समुदाय के रिवाजों के मुताबिक़ जब तक मरने वालों का अंतिम संस्कार नहीं हो जाता, उन्हें अकेला नहीं छोड़ा जा सकता. यही वजह है कि दर्जनों की संख्या में मार समुदाय के लोग हर दिन चौबीसों घंटे इस शव-गृह के बाहर बारी-बारी बैठे रहते हैं. कुछ ही दिन पहले चुराचाँदपुर में कुकी संगठनों ने इन मारे गए लोगों की याद में ख़ाली ताबूतों की एक रैली निकाली. मार समुदाय का कहना है कि मामले की स्वतंत्र जाँच होनी चाहिए. मार समुदाय के प्रवक्ता डेविड बहरिल ने कहा, “ट्रस्ट डेफिसिट (विश्वास की कमी) बहुत है. अभी 10 लोगों को मारा है. ये मई 2023 के बाद पहली बार हुआ है. इसलिए यहाँ बहुत असंतोष और ग़ुस्सा है.” हिंसा में जल रहा मणिपुर अमन से अब भी कोसों दूर नज़र आ रहा है.