शनिवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लगातार आठवीं बार संसद में देश का आम बजट पेश किया.
वित्त मंत्री ने अपने भाषण में विकसित भारत के लिए कई लक्ष्यों की बात कही. साथ ही उन्होंने कहा कि बजट के केंद्र में ग़रीब, युवा, किसान और महिलाओं को रखा गया है.
बजट में 70 प्रतिशत महिलाओं को आर्थिक गतिविधियों से जोड़ने का लक्ष्य भी रखा गया है. लेकिन सवाल ये है कि महिलाओं के लिए इसमें क्या ख़ास है? क्या उनके लिए किसी तरह के विशेष योजना की बात की गई है?
पिछले विधानसभा चुनावों के प्रचार से लेकर नतीजों में ये बात सामने आई है कि महिलाएं एक बड़े वोट बैंक के रूप में उभरी हैं. प्रचार के दौरान लगभग हर पार्टी ने उनके लिए विशेष कैश ट्रांसफर योजनाओं का ऐलान किया है.
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, कर्नाटक, छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनावों में ऐसा देखा गया, जहां उनको केंद्र में रख कर राजनीतिक पार्टियों ने योजनाओं की बात की.
पांच फरवरी को दिल्ली में विधानसभा चुनाव है. पार्टियों के चुनाव प्रचार के केंद्र में महिलाएं और महिलाओं से जुड़ी कई घोषणाएं शामिल हैं. पार्टियां आकर्षक योजनाओं के साथ उनका वोट हासिल करने की कोशिश में है.
सवाल ये भी है कि विधानसभा प्रचार में एक वोट बैंक की तरह दिखने वाली महिलाओं को केंद्र सरकार ने इस साल के बजट में क्या कुछ दिया है?
ऐसे में जानते हैं इस बजट में महिलाओं के लिए क्या ख़ास है और जानकारों की इस पर क्या कहना है.

बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक नई स्कीम की घोषणा की.
इसके तहत पांच लाख महिला, एससी और एसटी उद्यमियों के लिए अगले पांच साल के दौरान दो करोड़ रुपये तक के टर्म लोन की बात कही गई है.
भाषण में वित्तमंत्री ने कहा कि इस योजना में स्टैंड अप इंडिया स्कीम की सफलता से मिले अनुभव को भी शामिल किया जाएगा.
इस घोषणा के बारे में अर्थशास्त्री और इंडियन डेवलपमेंट में सलाहकर मिताली निकोरे कहती हैं, “ये एक बहुत बड़ी स्कीम है, लेकिन ये कैसे लागू होगी ये देखने वाली बात होगी. ये सिर्फ़ एक साल के लिए नहीं है बल्कि पांच साल की स्कीम है.”
उन्होंने कहा, “इसमें सिर्फ़ औरतें ही नहीं बल्कि अन्य तबके के लोग भी इसमें शामिल हैं. ऐसा देखा गया है कि महिलाओं के नाम पर चीज़ें रजिस्टर तो हो जाती हैं लेकिन असल में पूरा हाउसहोल्ड ही इसमें फ़ायदा ले लेता है. ऐसे में ज़रूरी है कि महिलाओं को वाकई इसका फ़ायदा मिले.”
वहीं आर्थिक मामलों की जानकार और वरिष्ठ पत्रकार सुषमा रामचंद्रन कहती हैं, “कई ऐसी स्टडी आई है जिसमें ये कहा गया है कि लोन मिलने में महिला उद्यमियों को काफ़ी दिक्कत होती है, बिज़नेस चलाने में महिलाओं को ज़्यादा दिक्कत होती है.”
वो कहती हैं, “सरकार ने इस समस्या को उन्होंने कुछ हद तक दूर करने की कोशिश की है लेकिन देखा जाए तो इसके अलावा इस बजट में महिलाओं के लिहाज से बहुत ख़ास नहीं है.”
अर्थशास्त्री मिताली निकोरे कहती हैं कि इस बजट में महिलाओं के लिए इसके अलावा अलग से कोई बड़ी घोषणा नहीं हुई है लेकिन उद्यम बढ़ाने के लिहाज़ से देखें तो इस योजना से उन महिलाओं को लाभ मिलेगा जो खुद का बिज़नेस सेटअप करना चाहती हैं.
बड़े वोट बैंक के रूप में उभरी महिलाओं के लिए बजट में ख़ास घोषणाओं के बारे में निकोरे कहती हैं कि चुनाव के दौरान पार्टियां जिस तरह से महिलाओं के लिए अलग से घोषणाएं करती हैं, वैसा तो कुछ इस बजट में नहीं लगा क्योंकि ये केंद्र का बजट है.
वो कहती हैं, “राज्य सरकार के बजट में महिलाओं के खाते में सीधे कैश ट्रांसफर स्कीम बड़ा हिस्सा ले रही हैं लेकिन केंद्र सरकार के बजट में कैश ट्रांसफर का हिस्सा कम ही होता है.”
वहीं इस पर सुषमा रामचंद्रन का कहना है कि इस बजट की सबसे बड़ी चीज़ जो है, वो है 12 लाख तक टैक्स फ्री करना. वो कहती हैं कि ये लंबे समय से मिडिल क्लास की मांग रही है.
वो कहती हैं, “अगर दिल्ली के चुनाव के लिहाज़ से भी देखें तो दिल्ली में 40 प्रतिशत तक तो मिडिल क्लास के लोग हैं. महिलाओं को किसी पार्टी ने कहा कि वो 2,000 देंगे, तो किसी ने कहा कि वो 2,500 देंगे. पार्टियों ने पहले ही इस बारे में घोषणा कर दी है.”


बजट में वित्त मंत्री ने सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 को लेकर भी ऐलान किया. अब इस कार्यक्रम के तहत पौष्टिक सहायता के लिए लागत मानकों में वृद्धि की बात कही गई है.
इस पर वरिष्ठ पत्रकार सुषमा रामचंद्रन कहती हैं, “मेरे हिसाब से इसमें जो एक चीज़ होनी चाहिए थी , वो ये कि आंगनवाड़ी को और मज़बूत करना. आंगनवाड़ी ग्रामीण इलाक़ों में एक अच्छा नेटवर्क है. यहां महिलाएं अपने बच्चे रख सकती हैं, बच्चों को पौष्टिक खाना मिलता है, साथ ही गर्भवती महिलाओं की देखभाल होती है और उन्हें भी पोषक आहार दिया जाता है.”
“इस पर और निवेश की ज़रूरत है ताकि आंगनवाड़ी में जो महिलाएं काम करती हैं, उनका वेतन बढ़े. ये महिलाएं तब और बेहतर काम कर पाएंगी. मुझे लगता है कि बजट में इस बारे में सोचा नहीं गया.”
आंगनवाड़ी सेवाएं एक केंद्र प्रायोजित योजना है. इस योजना को लागू करने का काम राज्य सरकार या केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन के दायरे में आता है.
इस योजना के तहत 8 करोड़ बच्चों, एक करोड़ गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को पोषक आहार दिया जाता है.
पीआईबी के आंकड़ों के अनुसार, 31 दिसंबर 2023 तक देश में 13,48,135 आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और 10,23,068 आंगनवाड़ी सहायिकाएं थीं.
अर्थशास्त्री मिताली निकोरे कहती हैं कि आंगनवाड़ी देश के बच्चे और महिलाओं के लिए बेहद अहम हैं.
वो कहती हैं, “अगर आप (महिलाएं) पूरा दिन घर का काम कर रही हैं तो वो वर्कफ़ोर्स में कैसे आ पाएंगी. घर और काम में संतुलन बनाते-बनाते बहुत सारी औरतें ड्रॉप आउट हो जाती है.”
“केयर इकोनॉमी से भी महिलाओं के लिए रोज़गार के अवसर पैदा होते हैं. केयर इकॉनोमी में एक पालना स्कीम आंगनवाड़ी के अंदर ही चल रही है. क़रीब 17,000 पालना घर बन रहे हैं लेकिन ये काफी नहीं है. आंगनवाड़ी तो ज़्यादातर ग्रामीण इलाके़ में है लेकिन शहरी महिलाओं के लिए इस बजट में उतना कुछ नहीं है.”
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने ‘पालना’ योजना के तहत पूरे भारत में आंगनवाड़ी केंद्रों में 17,000 शिशु गृह स्थापित करने की योजना है.


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा है और इसमें महिलाओं की अहम भूमिका की बात कही है.
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए बड़ी संख्या में महिलाओं को वर्कफ़ोर्स से जोड़ना होगा.
इस लक्ष्य के साथ बजट को देखने के नज़रिए पर वरिष्ठ पत्रकार सुषमा रामचंद्रन कहती हैं, “महिलाओं की वर्कफ़ोर्स में हिस्सेदारी बढ़ी है. पहले कम थी लेकिन हालिया आंकड़े में ये 41.7 प्रतिशत तक पहुंची है. लेकिन ये भी काफी कम है. अगर आप वैश्विक स्तर पर देखे तो वहां 50 फ़ीसदी से भी ज़्यादा है.”
“अध्ययन में ये भी आया है कि इसमें महिलाओं की जो हिस्सेदारी है, वो काफी कम आय वाली नौकरियों की हैं. कोविड के बाद महिलाओं की भागीदारी कम हुई थी, लेकिन इसमें सुधार हुआ. इस अध्ययन में ये भी आया कि इसमें बड़ी संख्या में वो महिलाए हैं जो खुद छोटे-मोटे काम कर रही हैं, जैसे छोटी दुकान चला रही हैं. अभी इस आंकड़े से संतुष्ट नहीं होना चाहिए.”
वहीं निकोरे कहती हैं, “बजट में उन वजहों की बात होनी चाहिए थी जो महिलाओं के वर्कफ़ोर्स का हिस्सा बनने के राह में बाधक है. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.”
वो कहती हैं, “औरतें जिस वजह से पीछे छूटती हैं, उस पर काम करने की ज़रूरत है. अगर हम जेंडर आधारित हिंसा की बात करें तो लोगों को लगता है कि इसका बजट से क्या लेना-देना है. लेकिन इसका लेना-देना है. वन स्टॉप सेंटर जो पूरे देश में बन रहे हैं, जहां हिंसा का शिकार हुई महिलाएं जा सकती हैं. उसके लिए भी तो आवंटन तो बजट में ही होता है.”
“अगर हम देखें तो सम्बल स्कीम और सामर्थ्य स्कीम है, जिसके अंतर्गत वन स्टॉप सेंटर बना सकते हैं. इस साल सम्बल स्कीम में 630 करोड़ दिया गया है, जिसे पिछले साल की तुलना में बढ़ाया नहीं गया है. यहां पर आवंटन बढ़ा नहीं है.”


जानकारों ने बताया कि महिलाओं के वर्कफ़ोर्स में आने में एक बड़ी बाधा डिजिटल स्किल्स भी हैं.
निकोरे कहती हैं, “नई नौकरियां जो आ रही हैं वो या तो प्लेटफ़ॉर्म इकोनॉमी में आ रही हैं, या फिर वो ऑनलाइन काम के लिए आ रही हैं, या फिर उसमें ज़रूरत होती है कि आपको ऑनलाइन काम समझ में आए. मैं ये चाहती थी कि बजट में महिलाओं के लिहाज़ से इस पर चर्चा हो.”
इसके अलावा एक मुद्दा सेफ़्टी का भी है. निकोरे कहती हैं कि कोई महिला घर से बाहर काम करने जाती है तो उसके मन में हमेशा एक ही बात रहती है, वो ये कि उसे इतने बजे तक घर पहुंचना ही है.
वो कहती हैं, “अगर इस पर भी चर्चा होती तो अच्छा रहता. इसके लिए बजट आवंटन की बहुत ज़रूरत है और मुझे लगता है कि इस दिशा में बजट बढ़ाने की ज़रूरत है.”