बजट 2025 : भारत ने किस पड़ोसी को दी कितनी मदद, क्या है मकसद

मालदीव के राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
मोहम्मद मुइज़्ज़ू के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत और मालदीव के रिश्ते में आई तल्ख़ी को दोनों देशों ने कम करने की कोशिश की है

भारत ने इस बार के बजट (2025-26) में विदेशी सहायता के मद में कटौती की है.

वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में विदेशी सहायता के लिए संशोधन आवंटन 5806 करोड़ रुपये था लेकिन इस साल इसे घटाकर 5,483 करोड़ रुपये कर दिया गया है.

हालांकि, भारत ने अपने पड़ोसी देशों का पूरा ध्यान रखा है. भारत ने मालदीव और अफ़ग़ानिस्तान के लिए सहायता बढ़ाई है, जबकि बांग्लादेश से रिश्तों में तल्खियों के बावजूद सहायता राशि में कटौती नहीं की गई है.

आइए जानते हैं 2025-26 के बजट में भारत ने अपने सात पड़ोसी देशों में से किसके लिए कितनी राशि का प्रावधान किया है और इसकी क्या वजह है?

भूटान

भूटान के किंग जिग्मे खेसर नामग्येल वांगचुक
भूटान के किंग जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक पिछले दिसंबर में दिल्ली आए थे. पिछले कुछ सालों में भारत और भूटान के बीच क़रीबी बढ़ी है.

भारत सबसे ज़्यादा भूटान की आर्थिक मदद करता है.

भारत ने 2025-26 के बजट में भूटान के लिए 2150 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है.

जबकि पिछले वित्त वर्ष के दौरान इसके लिए संशोधित बजट 2543 करोड़ रुपये का था.

भारत भूटान को इन्फ्रास्ट्रक्चर, पनबिजली परियोजनाओं और आर्थिक सहयोग से जुड़ी परियोजनाओं के लिए मदद देता है.

मालदीव

मालदीव के राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
मालदीव की अर्थव्यवस्था पर्यटन आधारित है और भारतीय पर्यटकों की इसमें काफ़ी हिस्सेदारी रही है

पिछले साल मालदीव से रिश्तों में तनातनी के बाद दोनों देशों की ओर से संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश शुरू हुई है.

इसका असर मालदीव को दी जाने वाली आर्थिक सहायता में दिख रहा है.

वित्त वर्ष 2024-25 में संशोधित बजट आवंटन के दौरान मालदीव की सहायता राशि 470 करोड़ रुपये में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई थी.

लेकिन वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में इसे बढ़ाकर 600 करोड़ रुपये कर दिया गया है.

दरअसल, मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू का झुकाव चीन की ओर होने की वजह से भारत से मालदीव के रिश्ते ख़राब होने शुरू हो गए थे.

लेकिन मालदीव और भारत दोनों ने पहल कर रिश्ते सुधारने की कोशिश की है.

बीते साल जब अंतरिम बजट पेश किया गया था, उस वक्त भारत और मालदीव के संबंधों में तल्ख़ियां थीं.

मालदीव को दी जाने वाली मदद में कटौती की गई थी और उसके लिए 400 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे. उस समय इसे दोनों देशों के बीच बढ़ी तनातनी से जोड़ा गया.

लेकिन उसके बाद के 12 महीनों में दोनों देशों के रिश्तों में नरमी के संकेत मिले हैं. सबसे बड़ा संकेत तो खुद मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने भारत दौरे पर आकर दिया.

बीते साल मुइज़्ज़ू 6 से 10 अक्तूबर तक भारत के आधिकारिक दौरे पर आए थे.

 

अफ़ग़ानिस्तान

विक्रम मिस्री
भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने आठ जनवरी को दुबई में तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताक़ी से मुलाक़ात की थी.

भारत अफ़ग़ानिस्तान से बेहतर रिश्ते कायम करने की लगातार कोशिश कर रहा है. लेकिन, बजट में इसकी छाप नहीं दिखाई दी.

भारत ने पिछले साल ( 2024-25) के बजट में अफ़ग़ानिस्तान के लिए पहले 200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था.

लेकिन संशोधित बजट में ये राशि घटाकर 50 करोड़ रुपये कर दी गई थी. लेकिन अब वित्त वर्ष 2025-26 के बजट में इसे बढ़ाकर 100 करोड़ रुपये कर दिया गया है.

हाल ही में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दुबई में तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताक़ी से मुलाक़ात की थी.

माना जा है कि ये भारत ने अफ़ग़ानिस्तान से ऐसे समय में दोस्ती का हाथ बढ़ाया है, जब पाकिस्तान के साथ उसके रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे हैं.

बांग्लादेश

मोहम्मद यूनुस
मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के दौरान भारत के साथ तल्ख़ी बढ़ी है.

शेख़ हसीना की सत्ता के पतन के बाद भारत और बांग्लादेश के रिश्ते तनावपूर्ण हो गए हैं, लेकिन इस बार के बजट में बांग्लादेश को मिलने वाली सहायता राशि को जस की तस रखा गया है.

वित्त वर्ष 2024-25 में बांग्लादेश को दी जाने वाली संशोधित बजट राशि 120 करोड़ रुपये थी. वित्त वर्ष 2025-26 में भी ये राशि 120 करोड़ रुपये ही है.

हालांकि, इस बार बांग्लादेश के बजट में मामूली कटौती हुई है. पिछले साल बांग्लादेश के लिए 157 करोड़ रुपये की राशि आवंटित हुई थी, जो इस बार घटाकर 120 करोड़ की गई है.

जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफ़ेसर प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं, “बांग्लादेश में इन दिनों भारत के लिए अलग रवैया है. लेकिन भारत चूंकि बड़ा देश है इसलिए वो ये देखता है कि पाँच साल या 10 साल बाद ये ज़रूरी नहीं रहेगा कि बांग्लादेश में भारत के ख़िलाफ़ ऐसा ही रुख़ रहेगा. क्योंकि समाज बहुत हद तक निवेश से ही चलता है.”

बीते साल पाँच अगस्त को बांग्लादेश में शेख़ हसीना की सरकार का पतन हुआ और वो भागकर भारत आईं. इसके बाद वहां मोहम्मद यूनुस की अगुवाई में बनी अंतरिम सरकार लगातार भारत के प्रति कड़ा रुख़ अपनाती दिखी है.

हालांकि, ये कटौती इसी वजह से हुई, ये स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता. लेकिन सरकारें दूसरे देशों को सहायता बजट में बढ़ोतरी या कटौती कर के एक संकेत देने की कोशिश ज़रूर करती हैं.

म्यांमार

म्यांमार
म्यांमार इस समय गृहयुद्ध से गुजर रहा है. पूर्वोत्तर के राज्यों की सीमा म्यांमार से जुड़ी है और गृह युद्ध के असर को लेकर भारत आशंकित है.

भारत ने म्यांमार के लिए सहायता राशि को 400 करोड़ से घटाकर 350 करोड़ रुपये कर दिया है.

यह कटौती ऐसे समय में की गई है जब म्यांमार में सैनिक शासन और विद्रोहियों में संघर्ष चल रहा है.

हालांकि म्यांमार में सशस्त्र संघर्ष की वजह से पूर्वोत्तर में अशांति फैलने की आशंका को लेकर भारत सतर्क है.

हाल में भारत ने भारत-म्यांमार सीमा पर आवाजाही को सीमित करने के लिए कड़े नियम बनाए हैं.

नेपाल

केपी शर्मा ओली
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के सत्ता में आने के बाद कहा जा रहा है कि चीन के साथ क़रीबी बढ़ी है.

हाल के दिनों में नेपाल पर चीन का असर बढ़ा है. लेकिन भारत नेपाल के साथ लगातार संबंध सुधारने की कोशिश में लगा है.

भारत ने हाल में ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है, जिससे चीन के साथ नेपाल की नज़दीकी बढ़े.

वित्त वर्ष 2024-25 में नेपाल के लिए संशोधित बजट 700 करोड़ रुपये का था.

वित्त वर्ष 2025-26 में भी इसमें कोई कटौती नहीं की गई है और इसे 700 करोड़ ही रखा गया है.

श्रीलंका

एस जयशंकर और दिसानायके
अनुरा कुमारा दिसानायके की जीत के तुरंत बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने श्रीलंका का दौरा किया था.

श्रीलंकाको दी जाने वाली सहायता राशि 300 करोड़ रुपये को बरकरार रखा गया है. इस बार इस राशि में कोई कटौती नहीं की गई है.

हाल के दिनों में श्रीलंका ने भारत से अपने रिश्ते सुधारने की कोशिश की है. श्रीलंका के राष्ट्रपति हाल में भारत दौरे पर आए थे.

इसके साथ ही अफ़्रीकी देशों के लिए सहायता राशि बढ़ाकर 225 करोड़ रुपये कर दी गई है जो पहले 200 करोड़ रुपये थी.

हालांकि लातिन अमेरिकी देशों के लिए सहायता राशि 90 करोड़ रुपये से घटाकर 60 करोड़ रुपये कर दी गई है

ईरान के चाबहार बंदरगाह के लिए भी 100 करोड़ रुपये की राशि तय की गई है.

‘बेहतर छवि बनाने में मददगार’

प्रोफ़ेसर प्रेमानंद मिश्रा कहते हैं, “रीजनल फ़्रेमवर्क में जो सबसे बड़ी पावर होती है, वो आर्थिक मदद के ज़रिए अपनी शक्ति को परिभाषित करती है.”

“नेपाल, भूटान या मालदीव ऐसे देश हैं जो कहीं न कहीं किसी पर निर्भर रहते हैं. एक पहलू ये भी है कि रीजनल फ़्रेमवर्क में चीन बहुत ही कैश रिच देश है, वो देशों की मदद तो करता है, लेकिन बिना शर्त ऐसा नहीं करता. तो इस रीजनल सुप्रीमेसी की जो चुनौतियां हैं उससे निपटने के लिए भारत दूसरे देशों को मदद करता है.”

वह कहते हैं, ”इकोनॉमिक इंगेजमेंट एक लंबे समय के लिए किए जाने वाले निवेश जैसा है. किसी देश को जब आप मदद करते हैं तो वो वहां के लोगों तक पहुंचता है. तब उस देश में भारत की छवि बहुत हद तक बदलती है. अंतरराष्ट्रीय संबंधों में परसेप्शन का ही सबसे बड़ा खेल होता है.”

इसके अलावा दूसरे देशों को मदद देकर अपनी अर्थव्यवस्था की मज़बूती भी नज़र आती है, कि हमारे पास इतनी पावर है कि हम मदद देते हैं, लेते नहीं है.

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