रेखा गुप्ता और अरविंद केजरीवाल में दो समानताएं हैं. अरविंद केजरीवाल की तरह रेखा गुप्ता भी हरियाणा की हैं और बनिया जाति से ताल्लुक रखती हैं.
अरविंद केजरीवाल, सुषमा स्वराज के बाद रेखा गुप्ता दिल्ली की तीसरी मुख्यमंत्री होंगी, जो हरियाणा से हैं.
दिल्ली से पहले बीजेपी की 13 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में सरकार थी लेकिन कोई भी महिला मुख्यमंत्री नहीं थी.
राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया के बाद बीजेपी का यह बॉक्स ख़ाली था, जिसे अब रेखा गुप्ता ने भर दिया है.
अब रेखा गुप्ता के दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने के बाद ये संख्या बनी रहेगी.
भारत की चुनावी राजनीति में पिछले एक दशक से महिलाओं को नए वोट बैंक के रूप में देखा जा रहा है.
कहा जा रहा है कि महिलाओं को जाति और धर्म की पहचान से अलग राजनीतिक रूप से लामबंद किया जा सकता है. ऐसे में शायद बीजेपी इस आधी आबादी के बीच संदेश देना चाहती है कि उसकी प्राथमिकता में वे हैं.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी और बीजेपी से लेकर कांग्रेस तक ने चुनावी वादों में महिलाओं को प्राथमिकता दी थी.
बीजेपी ने तो दिल्ली में चुनाव जीतने के बाद महिलाओं को हर महीने 2500 रुपए देने का वादा किया है.
ऐसे में रेखा गुप्ता को बीजेपी ने मुख्यमंत्री के लिए चुना तो यह उसकी इसी रणनीति के हिस्से के तौर पर देखा जा रहा है.
आरएसएस और विद्यार्थी परिषद की पृष्ठभूमि

कहा जाता है कि बीजेपी में बड़े नेता वही बनते हैं, जिनकी पृष्ठभूमि आरएसएस या अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की होती है.
बीजेपी के शीर्ष नेताओं की पृष्ठभूमि देखने के बाद इस बात की पुष्टि भी होती है. वो चाहे अटल-आडवाणी की जोड़ी हो या नरेंद्र मोदी और अमित शाह की. या फिर अरुण जेटली हों या नितिन गडकरी.
रेखा गुप्ता के साथ आरएसएस और एबीवीपी दोनों की पृष्ठभूमि हैं.
सुषमा स्वराज के बारे में कहा जाता है कि वह बीजेपी में शीर्ष या निर्णय लेने की क्षमता रखने वाली नेता बन सकती थीं लेकिन उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि न तो आरएसएस वाली थी और न ही एबीवीपी वाली. सुषमा स्वराज की शुरुआती राजनीतिक पृष्ठभूमि जनता पार्टी की थी.
रेखा गुप्ता भले पहली बार विधायक बनी हैं लेकिन दिल्ली की राजनीति के लिए नई नहीं हैं. वह दिल्ली नगर निगम की पार्षद रही हैं.
रेखा गुप्ता ने पिछली दो बार से दिल्ली में विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
इस बार शालीमार बाग से रेखा गुप्ता ने आम आदमी पार्टी की बंदना कुमारी को 29,595 मतों से मात दी. दिल्ली में विधानसभा चुनाव इतने बड़े मार्जिन से जीतना एक बड़ी जीत है.
दिल्ली में चुनाव जीतने के 10 दिन बाद बीजेपी ने मुख्यमंत्री कौन होगा से पर्दा हटाया.
इन 10 दिनों में कई नामों की चर्चा हुई. सबसे ज़्यादा चर्चा में प्रवेश वर्मा थे. प्रवेश वर्मा ने नई दिल्ली सीट से दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल को हराया था.
प्रवेश वर्मा कैसे पिछड़ गए?
प्रवेश वर्मा ने 4089 मतों से अरविंद केजरीवाल को मात दी थी. प्रवेश वर्मा को कुल 30,088 वोट मिले और अरविंद केजरीवाल को 25,999 वोट मिले.
तीसरे नंबर पर कांग्रेस के संदीप दीक्षित रहे, जिन्हें कुल 4,568 वोट मिले. इस जीत के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वर्मा की दावेदारी मज़बूत हुई थी लेकिन रेखा गुप्ता भारी पड़ीं.
मीडिया में अब ये क़यास लगाए जा रहे हैं कि प्रवेश वर्मा को उपमुख्यमंत्री की कुर्सी मिल सकती है.
प्रवेश वर्मा के पिता साहिब सिंह वर्मा 26 फ़रवरी 1996 से 12 अक्तूबर 1998 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे थे.
बीजेपी कांग्रेस और बाक़ी क्षेत्रीय पार्टियों पर परिवारवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाती रही है. ऐसे में प्रवेश वर्मा को अगर दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाती तो पार्टी को विपक्ष की आलोचना का सामना करना पड़ सकता था.
बीजेपी मुख्यमंत्रियों के बेटों को मुख्यमंत्री बनाने से परहेज करती रही है. हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर को मुख्यमंत्री का अहम दावेदार माना जाता था लेकिन बीजेपी ने जयराम ठाकुर को चुना था.
दिल्ली में मुख्यमंत्री के चुनाव से पहले ये कहा जा रहा था कि किसान आंदोलन के कारण बीजेपी से जाटों की नाराज़गी रही है और इसे पाटने के लिए प्रवेश वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है.
लेकिन बीजेपी की एक रणनीति यह भी रही है कि जिस राज्य में किसी ख़ास जाति का प्रभाव ज़्यादा है, उस जाति के बदले दूसरी जाति से सीएम बनाओ.
जैसे हरियाणा में जाट राजनीतिक और समाजिक रूप से प्रभावी हैं लेकिन बीजेपी ने उस जाति का सीएम पिछले 11 सालों से नहीं बनाया. इसी तरह महाराष्ट्र में मराठों का प्रभाव ज़्यादा है लेकिन बीजेपी ने विदर्भ के ब्राह्मण देवेंद्र फडणवीस को सीएम बनाया. इसी तरह झारखंड में आदिवासी मुख्यमंत्री के बदले तेली जाति से ताल्लुक रखने वाले रघुबर दास को सीएम बनाया था.
कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि प्रवेश वर्मा की छवि विवादित रही है, इसलिए भी बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी देने से परहेज किया.
प्रवेश वर्मा ने अक्तूबर 2022 में दिल्ली में विश्व हिन्दू परिषद के एक कार्यक्रम में एक ख़ास समुदाय के संपूर्ण बहिष्कार की बात कही थी.
प्रवेश वर्मा ने कहा था, ”मैं कहता हूँ, अगर इनका दिमाग़ ठीक करना है, इनकी तबीयत ठीक करनी है तो एक ही इलाज है और वो है संपूर्ण बहिष्कार.”
तब प्रवेश वर्मा पश्चिमी दिल्ली से सांसद थे. कहा जाता है कि पार्टी प्रवेश वर्मा के इस बयान से नाराज़ थी. 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रवेश वर्मा का महरौली से टिकट भी कट गया था.
लेकिन रेखा गुप्ता के भी पुराने ट्वीट सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, जो राजनीतिक मर्यादा के बिल्कुल उलट हैं.
जब रेखा गुप्ता ये सब ट्वीट करती थीं तो किसी बड़े राजनीतिक पद पर नहीं थीं, इसलिए लोगों का ध्यान नहीं जाता था लेकिन प्रवेश वर्मा लोकसभा सांसद थे और उनके साथ एक राजनीतिक विरासत भी जुड़ी थी, इसलिए उनकी कही बात मीडिया में सुर्खियां बनी थी.

रेखा गुप्ता कौन हैं?
रेखा गुप्ता दिल्ली की राजनीति में पिछले 30 सालों से सक्रिय हैं. रेखा जब दिल्ली यूनिवर्सिटी के दौलत राम कॉलेज से बीकॉम कर रही थीं, तभी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत कर दी थी. 1992 में रेखा ने बीजेपी के छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को जॉइन किया था.
बुधवार को दिल्ली में बीजेपी के 48 विधायकों ने उन्हें सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुन लिया और आज यानी 20 फ़रवरी को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगी. रेखा गुप्ता ने मुख्यमंत्री के लिए चुने जाने पर कहा, ”देश की हर महिला के लिए यह गर्व की बात है. बीजेपी ने दिल्ली में जो भी वादा किया है, उसे हम पूरा करेंगे. मेरी ज़िंदगी का यही मक़सद है.”
रेखा गुप्ता ने आम आदमी पार्टी की तीन बार की विधायक बंदना कुमारी को मात दी थी. 50 साल की रेखा गुप्ता तीन बार शालीमार बाग से पार्षद रही हैं. रेखा गुप्ता 2000 के दशक में बीजेपी में आई थीं और संगठन में कई पदों पर रहीं. इनमें दिल्ली बीजेपी महासचिव, बीजेपी महिला मोर्चा की अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश महिला मोर्चा की उपाध्यक्ष का पद उनके नाम रहा. इसके अलावा रेखा गुप्ता बीजेपी युवा मोर्चा विंग की भी पदाधिकारी रही हैं.
रेखा गुप्ता को हार का भी सामना करना पड़ा है. शालीमार बाग से 2015 और 2020 में आम आदमी पार्टी की बंदना कुमारी से रेखा गुप्ता को हार मिली थी.
बीजेपी ने स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की है कि आम आदमी पार्टी ने आतिशी को अस्थायी मुख्यमंत्री बनाया था लेकिन उसने एक महिला को स्थायी मुख्यमंत्री बना दिया है.
रेखा गुप्ता 1995 में दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन की सचिव बनी थीं और बाद में अध्यक्ष बनीं. जब रेखा गुप्ता डीयूएसयू में सचिव थीं, तब कांग्रेस के छात्र विंग एनएसयूआई से अल्का लांबा से अध्यक्ष थीं.
अल्का लांबा ने रेखा गुप्ता के मुख्यमंत्री चुने जाने पर डीयू के दिनों की अपनी एक तस्वीर शेयर करते हुए लिखा है, ”1995 की यह यादगार तस्वीर है, जब मैंने और रेखा गुप्ता ने एक साथ शपथ ली थी. मैंने एनएसयूआई से दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की थी और रेखा ने एबीवीपी से महासचिव पद पर जीत हासिल की थी. रेखा गुप्ता को बधाई और शुभकामनाएं. दिल्ली को चौथी महिला मुख्यमंत्री मिलने पर बधाई और हम दिल्ली वाले उम्मीद करते हैं कि माँ यमुना स्वच्छ होंगी और बेटियां सुरक्षित.
रेखा गुप्ता दिल्ली की नई मुख्यमंत्री होंगी. भारतीय जनता पार्टी के दिल्ली स्थित दफ़्तर में पार्टी विधायक दल की बैठक के बाद उनके नाम पर मुहर लगी.
इस बैठक में पर्यवेक्षक के रूप में मौजूद भारतीय जनता पार्टी के नेता रविशंकर प्रसाद ने पत्रकारों के सामने रेखा गुप्ता के नाम का एलान करते हुए कहा, “प्रवेश वर्मा, सतीश उपाध्याय और विजेंद्र गुप्ता ने रेखा के नाम का प्रस्ताव दिया. नौ लोगों ने उनके नाम का अनुमोदन किया. अब हम सब राजभवन जा रहे हैं.”
रेखा गुप्ता ने पत्रकारों से कहा, “मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा, वीरेंद्र सचदेवा, रविशंकर प्रसाद और सभी कार्यकर्ताओं का धन्यवाद अदा करती हूं. मैं अपने सभी विधायकों का धन्यवाद अदा करती हूं.”
रेखा गुप्ता दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री होंगी. उनसे पहले सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित और आतिशी इस पद पर रह चुकी हैं.
कौन हैं रेखा गुप्ता?

इमेज स्रोत,Rekha Gupta
हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने शालीमार बाग सीट से आम आदमी पार्टी की बंदना कुमारी को क़रीब 30 हज़ार वोट से हराया था.
वह इसी सीट पर 2020 के चुनाव में मामूली अंतर से हार गईं थीं.
रेखा गुप्ता दिल्ली नगर निगम की पार्षद और दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं.
दिल्ली चुनाव में जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए जिन नामों की चर्चा हो रही थी उनमें से रेखा गुप्ता का नाम भी प्रमुख था.
कई विश्लेषकों के मुताबिक़ रेखा गुप्ता के एलान से बीजेपी महिला और वैश्य समुदाय को साध सकती है.
उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत दिल्ली यूनिवर्सिटी में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ की.
1996 में वो दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डुसू) की अध्यक्ष बनीं.
2007 में वो दिल्ली के पीतमपुरा (उत्तर) की काउंसिलर बनीं.
रेखा गुप्ता दिल्ली बीजेपी महिला मोर्चा की जनरल सेक्रेटरी भी रह चुकी हैं.
2004 से 2006 तक वो भारतीय जनता पार्टी की युवा मोर्चा की राष्ट्रीय सचिव रहीं.