नहाय खाय के साथ शुरू हुआ लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व।
सोमवार को ऋषिकेश स्थित गंगा घाटों पर लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ। छठ के चलते तीर्थनगरी और आसपास के बाजारों में खाफी जन सैलाब रहा।
ऋषिकेश और आस पास के क्षेत्रों में बिहार और पूर्वांचल के लोग बड़ी संख्या में निवास करते हैं। ऋषिकेश, मुनिकीरेती, स्वर्गाश्रम, डोईवाला, रानीपोखरी, रायवाला आदि जगहों पर निवास करने वाले बिहार और पूर्वांचल के लोग एकजुट होकर गंगा घाटों पर लोक आस्था के महापर्व छठ को धूमधाम से मनाते हैं।
छठ पूजा के लिए अलग-अलग कथाएं प्रचलित हैं। इनमें एक राजा प्रियवद की है, जो काफी लोकप्रिय है। माना जाता है कि राजा प्रियवद निसंतान थे। उन्होंने अपनी पीड़ा महर्षि कश्यप से साझा की। उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करने को कहा। यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर खाने से उनकी पत्नी रानी मालिनी को पुत्र की प्राप्ति हुई, लेकिन पुत्र मृत पैदा हुआ। राजा प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान पहुंचे और पुत्र वियोग में अपने प्राण त्यागने लगे। तभी ब्रह्माजी की पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने कहा कि वह मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसलिए उनका नाम षष्ठी रखा गया है। जो कोई विधि विधान से उनकी पूजा करता है वह उनकी मांगें पूरी करती हैं। राजा प्रियवद ने उनके कहे अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को माता का व्रत रखा और उन्हें पुत्र प्राप्ति हुई।