मैन एस. एन. सुब्रह्मण्यन का कहना है कि कर्मचारियों को सप्ताह में 90 घंटे काम करना चाहिए और लोगों को रविवार को भी काम करना चाहिए.
उनके इस बयान पर कई जाने माने लोगों ने प्रतिक्रिया दी है और इसपर एक बार फिर से बहस छिड़ी हुई है कि कर्मचारियों को सप्ताह में कितने घंटे काम करने चाहिए.
मशहूर अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने इंस्टाग्राम पर स्टोरी में इस मुद्दे पर लिखा कि कंपनियों में शीर्ष पदों पर बैठे लोगों की ओर से इस तरह के बयान आना चौंकाने वाला है. उन्होंने इस स्टोरी में #mentalhealthmatters यानी मानसिक स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण बताने वाला हैशटैग भी इस्तेमाल किया.
इससे पहले इंफोसिस के फाउंडर नारायणमूर्ति भी सप्ताह में 70 घंटे काम करने की बात कह चुके हैं.
एस. एन. सुब्रह्मण्यन ने बीते दिनों कंपनियों के कर्मचारियों के साथ बीतचीत के दौरान ये बात कही. उनके वीडियो का एक हिस्सा रेडिट पर पोस्ट किया गया है.
वीडियो में सुब्रह्मण्यन ने कहा, “सप्ताह में 90 घंटे काम करना चाहिए. मुझे इस बात का अफ़सोस है कि मैं आपसे रविवार को काम नहीं करवा पा रहा हूं. अगर मैं ऐसा करवा सकता हूं तो मुझे ज़्यादा खुशी होगी क्योंकि मैं ख़ुद रविवार को काम करता हूं. घर पर बैठकर आप क्या करते हैं…”
’’सच कहूं तो मुझे इस बात का अफ़सोस है कि मैं आप लोगों से रविवार को काम नहीं करा पा रहा हूं। अगर मै आप लोगों से रविवार को भी काम करा पाता तो मुझे बहुत खुशी होती। क्योंकि मै रविवार को भी काम करता हूं। आप घर पर बैठ क्या करते हैं? आप अपनी पत्नी को कितनी देर तक देख सकते हैं? पत्नियां कब तक अपने पतियों को देख सकती हैं? ऑफिस पहुंचे और काम करें।’’- एस एन सुब्रह्मण्यम, चेयरमैन- लार्सन एंड ट्रूबो
एस. एन. सुब्रह्मण्यन ने यह भी कहा कि “आप घर पर बैठकर कितनी देर अपनी पत्नी का चेहरा देखेंगे.”
उनके इस बयान ने वर्क आवर (काम के घंटे), आराम की ज़रूरत और निज़ी ज़िंदगी को लेकर बड़ी बहस छेड़ दी है.
शादी डॉट कॉम के संस्थापक अनुपम मित्तल ने इस मुद्दे पर सोशल मीडिया एक्स पर चुटकी लेते हुए लिखा है, “लेकिन सर, अगर पति-पत्नी एक दूसरे को नहीं देखेंगे तो हम दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाला देश कैसे बनेंगे.”
किसने क्या कहा?
इस बहस में महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने कहा, “मेरा मानना है कि हमने कितनी देर काम किया इसे छोड़कर हमें काम की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए. यह चालीस घंटे, सत्तर घंटे या नब्बे घंटे काम करने का मामला नहीं है. आप क्या कर रहे हैं यह इसपर निर्भर करता है. आप 10 घंटे काम करके भी दुनिया बदल सकते हैं.”
“मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि मैं सोशल मीडिया एक्स पर इसलिए नहीं हूं, क्योंकि मैं अकेला हूं. मेरी पत्नी शानदार हैं और मुझे उनको निहारना पसंद है और उनके साथ वक़्त बिताना भी.”
सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ने भी एस एन सुब्रह्मण्यन के बयान पर चुटकी ली.
उन्होेंने लिखा, “हां आनंद महिंद्रा, मेरी पत्नी मानती हैं कि मैं बढ़िया हूं, वो रविवार को मुझे निहारना पसंद करती हैं. काम की गुणवत्ता मायने रखती है, काम के घंटे नहीं.”
“मुझे लगता है यह बहस गलत दिशा में जा रही है। क्योंकि यह बहस आप कितना काम करते हैं इस बारे में है। मेरा तर्क है कि हमे काम की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए। यह 40 घंटे, 70 घंटे या 90 घंटे काम कर रहे हैं तो आप कैसा काम कर रहे हैं। आप 10 घंटे में दुनिया बदल सकते है।” – आनंद महिंद्रा।
उद्योगपति हर्ष गोयनका ने भी आनंद महिंद्रा की बातों का समर्थन करते हुए उनके बयान को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर किया है.
उन्होंने लिखा, “सप्ताह में 90 घंटे काम? संडे (रविवार) का नाम बदल कर सन-ड्यूटी कर दिया जाए या फिर छुट्टी के दिन का धारणा को ही मिथक करार दे दिया जाए? मुझे लगता है कि मेहनत से और स्मार्ट तरीके से काम करना चाहिए, लेकिन क्या ज़िंदगी को लगातार एक ऑफ़िस शिफ्ट में बदल दिया जाना चाहिए? मुझे लगता है कि ये थकने का तरीका है सफलता का नहीं.”
दरअसल भारत में फ़ैक्टरी, दुकानों और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों जैसी जगहों पर काम करने वालों के लिए वर्किंग आवर निर्धारित है और इसके संबंध में श्रम और रोज़गार मंत्रालय के स्टैंडिंग ऑर्डर भी हैं.
“बड़े पदो पर बैठे लोगों की तरफ से इस तरह का बयान आना चौंकाने वाला है। बड़े पद पर बैठे लोगों को अपने कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में सोचना चाहिए।” – अभिनेत्री दीपिका पादूकोण।
क्या कहते हैं लोग? दिन में कितने घंटे काम करना चाहिए?
पत्रकारों ने इस मुद्दे पर लोगों से भी उनकी राय मांगी थी कि काम के लिए कितने घंटे होने चाहिए. इस पर लोगों की अलग-अलग प्रतिक्रिया देखने के मिली है.
किसी ने इस पर लिखा है कि है काम के लिए छह घंटे काफ़ी हैं तो कोई बता रहा है कि काम के लिए आठ से नौ घंटे होने चाहिए. वहीं एक यूज़र ने लिखा है, “बेरोज़गार हाज़र हों.”
फ़रहान ख़ान नाम के एक यूज़र ने इंस्टाग्राम पर अपने कमेंट में आरोप लगाया है कि एलएनटी के चेयरमैन श्रमिकों के शोषण की सलाह दे रहे हैं.
वहीं प्रदीप कुमार नाम के एक यूज़र का कहना है, “काम पूरा होने तक काम करना चाहिए, यह काम के घंटों पर आधारित नहीं होना चाहिए.”
जबकि ब्रिजेश चौरसिया लिखते हैं, “यह सैलरी पर निर्भर करता है. हम चैरिटी के लिए काम नहीं करते हैं. हम अपने जीवन यापन के लिए काम करते हैं.”
‘जज़्बात का इज़हार’ नाम की एक आईडी की तरफ से कमेंट किया गया है, “मैं अगर मालिक हूं तो 24 घंटे.”
डॉक्टरों का क्या कहना है?

दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में कम्यूनिटी मेडिसिन डिपार्टमेंट के डॉक्टर संजय राय बातचीत में कहते हैं, “सप्ताह में काम करने के लिए 48 घंटे रखे गए हैं तो इसके पीछे वजह भी है.”
“आप क्या काम करते हैं, इस पर भी निर्भर करता है कि आप कितना काम कर सकते हैं.”
डॉक्टर संजय का कहना है, “अगर आप कंपनी के मालिक हैं तो आप किसी दबाव में काम नहीं करते हैं आप मालिकाना हक़ के साथ अपना काम करते हैं. और लोग दफ़्तर में दबाव के बीच काम कर रहे हैं या पैशन के साथ काम कर रहे हैं, इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है.”
वो बताते हैं कि ज़्यादा शारीरिक परिश्रम वाले काम या स्पोर्ट्स एक्टिविटी में आदमी जल्दी थकता है, और आमतौर पर पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को मेहनत वाले काम में थकावट जल्दी होती है.
पुणे के डी वाई पाटिल मेडिकल कॉलेज के एमेरिटस प्रोफ़ेसर डॉक्टर अमिताव बनर्जी कहते हैं, “हमारे देश में आबादी बड़ी है तो आप इस तरह की बात कर सकते हैं, दूसरे देशों में तो आपको लोग ही नहीं मिलेंगे.”
“असल बात है कि काम की परिभाषा क्या है? एक होता है फ़िज़िकल वर्क जिसमें आप आठ घंटे तक काम करते हैं. आप ज़्यादा काम करेंगे तो थकने के बाद वर्क एक्सिडेंट्स बढ़ जाएंगे. चाहे वो फ़ैक्टरी में हो, गाड़ी चलाने का काम हो या अकाउंट से जुड़ा काम हो. हर काम में हादसा हो सकता है.”

डॉक्टर अमिताव बनर्जी का कहना है, “क्रिएटिव लोग 24 घंटे काम कर सकते हैं. आप जब काम नहीं करते हैं तब भी आपका दिमाग़ क्रिएटिव काम कर रहा होता है और आपको आइडिया आता है. इस तरह के लोग सपने में भी काम कर सकते हैं, जैसे बेंज़ीन (एक रासायनिक कंपाउंड) की खोज सपने में हुई थी.”
“आर्कमेडीज़ ने नहाते हुए साबुन को टब गिरते देखा और यूरेका… यूरेका चिल्लाए, फिर अपना सिद्धांत पेश किया. न्यूटन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने पेड़ से फल को गिरते हुए देखा और गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत पेश किए.”
लोग आमतौर पर वर्क लाइफ़ बैलेंस की भी बात करते हैं और ज़्यादा काम की वजह से कई बार शारीरिक और मानसिक बीमारियों के शिकार भी हो जाते हैं.
हमने इसे समझने के लिए दिल्ली के बीएल कपूर मैक्स हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रतीक किशोर से बात की.
उनका कहना है, “ज़्यादा काम या मेहनत करने से आपकी नींद पर असर होता है. शरीर को आराम नहीं मिलेगा तो आपके हार्मोन्स लगातार सक्रिय रहेंगे, इससे हमारा स्ट्रेस हार्मोन बढ़ेगा. यह आर्टेरी को सख़्त बनाता है, आपका बीपी बढ़ सकता है, मोटापा, शुगर, कॉलेस्ट्रॉल बढ़ने की संभावना होती है. हार्ट अटैक और ब्रेन अटैक की संभावना भी बढ़ जाती है.”
“हमारे शरीर को एक निश्चित मात्रा में काम करना होता है और इसी तरह से आराम भी करना होता है. यह बीमारियों से लड़ने की हमारी क्षमता को भी प्रभावित करता है.”
वो कहते हैं, “आराम करने से शरीर के अहम अंगों की रिकवरी भी होती है. इस लिहाज से एक दिन में अधिकतम आठ घंटे काम किया जा सकता है, लेकिन हम घर आकर भी काम करते हैं. तो यह 10 घंटे तक पहुंच जाता है.”
‘जब कुछ काम नहीं आता, कड़ी मेहनत काम आती है’

एम्स के पूर्व डॉक्टर और ‘सेंटर फ़ॉर साइट’ के संस्थापक डॉक्टर महिपाल सचदेवा इस बहस में थोड़ी अलग राय रखते हैं.
उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा, “हर देश में काम और विकास का एक टाइम फ़्रेम होता है. जैसे जापान के लोगों ने परमाणु हमले के बाद कड़ी मेहनत की और बहुत काम किया. आपको अगर आगे बढ़ना है और आपमें काम का जुनून है तो आप ज़्यादा काम करेंगे. हालांकि इसके लिए आपके पास काम भी होना चाहिए.”
“लोग क्वालिटी और क्वांटिटी की बात करते हैं. अगर ‘वर्क इज़ वर्शिप’ (कर्म ही पूजा ) है तो मेरा मानना है कि ये दोनों एक साथ क्यों नहीं हो सकते हैं. लेकिन आप लगातार काम नहीं कर सकते. इस तरह से काम करने में आपको आराम की ज़रूरत होती है.”
डॉक्टर सचदेवा कहते हैं कि किसी डॉक्टर के पास 50 मरीज़ हों तो, या तो वो सभी देखे या फिर देखने से मना कर दे, वह यही कर सकता है.
वो कहते हैं, “काम करने से तनाव होता है यह सही है. मैं आँख़ों का डॉक्टर हूं तो यह कहूंगा कि इससे आँखों में खिंचाव, सिर दर्द, आँखें लाल होना जैसी समस्या भी आ सकती है. लेकिन कौन कितना काम कर सकता है, यह हर इंसान के लिए अलग-अलग होता है. ऐसे इसलिए क्योंकि ये देखना होता है कि किसी का शरीर उसे कितना काम करने की अनुमति देता है.”
डॉक्टर सचदेवा कहते हैं, “हालांकि, अंत में एक बात ज़रूर कहूंगा, जब कोई उपाय काम नहीं करता है तब कड़ी मेहनत ही काम में आती है.”