इंसुलिन रेजिस्टेंस या इंसुलिन प्रतिरोध की आजकल काफी चर्चा हो रही है. मीडिया और सोशल मीडिया पर इसे लेकर काफी कुछ लिखा-पढ़ा जा रहा है.
इंसुलिन रेजिस्टेंस पर किताबें छप रही हैं, वीडियो बनाए जा रहे हैं, जिनमें इसे किसी खास व्यायाम और आहार से संतुलित करने का दावा किया जा रहा है.
इस पर लोगों का ध्यान इसलिए भी जा रहा है क्योंकि इंसुलिन रेजिस्टेंस के कारण टाइप 2 डायबिटीज़ यानी मधुमेह सहित कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं.
ऐसे में इंसुलिन रेजिस्टेंस को समझना जरूरी है. इंसुलिन रेजिस्टेंस कैसे होता है? इसके क्या लक्षण हैं? क्या इसे ठीक किया जा सकता है?
क्या उपवास से इसे नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है?
इंसुलिन क्या है?
इंसुलिन पैंक्रियाज में बनने वाला एक महत्वपूर्ण हार्मोन है. यह रक्त में ग्लूकोज़ नियंत्रित करने का काम करता है.
अगर पैंक्रियाज बहुत कम इंसुलिन बनाए या अगर शरीर इंसुलिन को सही तरीके से इस्तेमाल न कर सके, तो स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियां हो सकती हैं.
इंसुलिन शरीर में ऐसे काम करता है:
- हम जो खाना खाते हैं, शरीर उसे ग्लूकोज़ में बदलता है. ग्लूकोज़ ही हमारे शरीर के लिए जरूरी ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है.
- फिर ये ग्लूकोज़ हमारे रक्त में जाता है और पैंक्रियाज को इंसुलिन निकालने का संकेत देता है.
- इंसुलिन रक्त में मिले ग्लूकोज़ को मांसपेशियों, वसा और लिवर की कोशिकाओं में भेजने में मदद करता है, ताकि शरीर ऊर्जा के लिए इस ग्लूकोज़ का इस्तेमाल कर सके या फिर इसे बाद में प्रयोग के लिए संग्रहित कर ले.
- जब ग्लूकोज़ कोशिकाओं में प्रवेश करता है, तो रक्त में इसका स्तर कम हो जाता है. इससे पैंक्रियाज को इंसुलिन का उत्पादन बंद करने का संकेत मिलता है.

इंसुलिन प्रतिरोध से क्या मतलब है?
इंसुलिन प्रतिरोध या इंसुलिन रेजिस्टेंस एक जटिल प्रक्रिया है. ये तब होता है, जब मांसपेशियों, वसा और लिवर की कोशिकाएं इंसुलिन पर सही प्रतिक्रिया नहीं देती हैं.
इस वजह से कोशिकाएं रक्त से ग्लूकोज़ को प्रभावी तरीके से अवशोषित करना या संग्रहित करना बंद कर देती हैं.
इस वजह से रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर घटता नहीं है. वहीं पैंक्रियाज रक्त में ग्लूकोज़ के स्तर को कम करने के लिए और अधिक इंसुलिन बनाता है. इस स्थिति को हाइपरइंसुलिनमिया कहा जाता है.
जब तक पैंक्रियाज कमजोर कोशिका प्रतिक्रिया पर काबू पाने के लिए पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन निकालता है, तब तक ब्लड शुगर लेवल यानी रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर सीमा में रहता है.
वहीं, अगर इंसुलिन के प्रति कोशिकाओं का प्रतिरोध बढ़ता है, तो रक्त में ग्लूकोज़ का स्तर भी बढ़ जाता है. रक्त में ग्लूकोज़ की बढ़ोतरी से टाइप 2 डायबिटीज सहित कई दूसरी बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है.
यूके राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा के सलाहकार चिकित्सक, एन्डोक्रनालजी, डायबिटीज और इंटरनल मेडिसिन के विशेषज्ञ फ्रैंकलिन जोसेफ का कहना है कि इंसुलिन प्रतिरोध ‘एक जटिल स्थिति है, जो आनुवांशिक, जीवनशैली और पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होती है’. इंसुलिन रेजिस्टेंस का कारण हर व्यक्ति में अलग अलग हो सकता है.

आठ कारणों से बढ़ जाती है इंसुलिन की प्रतिरोधकता
फ्रैंकलिन जोसेफ डॉ फ्रैंक्स वेट लॉस क्लीनिक के संस्थापक भी हैं. वो कहते हैं कि इंसुलिन रेजिस्टेंस कई वजहों से हो सकता है:
- मोटापा: मोटापा विशेष रूप से पेट की चर्बी का इंसुलिन रेजिस्टेंस से सीधा संबंध बताया जाता है.
- शारीरिक श्रम में कमी : नियमित रूप से शारीरिक श्रम न करने से भी इंसुलिन प्रतिरोध का जोखिम बढ़ सकता है.
- आनुवांशिकी: कुछ लोगों में आनुवांशिक रूप से इंसुलिन प्रतिरोध की प्रवृत्ति होती है.
- ख़राब आहार: प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, परिष्कृत कार्बोहाइड्रेट और चीनी से भरपूर आहार से इंसुलिन प्रतिरोध हो सकता है. ऐसे आहार से रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा तेज़ी से बढ़ सकती है, जिससे इंसुलिन का उत्पादन बढ़ सकता है.
- लंबे समय तक तनाव: कोर्टिसोल जैसे तनाव हार्मोन रक्त में ग्लूकोज़ के स्तर को नियंत्रित करने की इंसुलिन की क्षमता में गड़बड़ी कर सकते हैं, जिससे इंसुलिन प्रतिरोध हो सकता है.
- नींद में गड़बड़ी: नींद की कमी या खराब नींद इंसुलिन संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकती है. इंसुलिन संवेदनशीलता यह बताती है कि शरीर की कोशिकाएं रक्त में मिले ग्लूकोज़ का कितनी अच्छी तरीके से इस्तेमाल करती हैं. नींद की कमी शरीर में हार्मोन के स्तर में गड़बड़ी कर सकती है, जिससे इंसुलिन प्रतिरोध की समस्या हो सकती है.
- कुछ मेडिकल कंडिशन: पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस), कुशिंग सिंड्रोम और फैटी लीवर रोग में भी इंसुलिन प्रतिरोध का जोखिम रहता है.
- बढ़ती उम्र : उम्र बढ़ने के साथ मानव शरीर की कोशिकाओं की प्रतिक्रिया कम हो सकती है. इससे इंसुलिन प्रतिरोध का जोखिम बढ़ता है.

रमज़ान का उपवास
रमज़ान के महीने में कई मुस्लिम सुबह से शाम तक रोज़ा रखते हैं. चैरिटी ‘डायबिटीज़ यूके’ स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोगों को सावधानी बरतने की सलाह देता है.
यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल बर्मिंघम में डायबिटीज़ और एन्डोक्रनालजी के प्रोफेसर और क्लीनिकल डायरेक्टर इन डायबिटीज़ प्रोफेसर वसीम हनीफ कहते हैं, “डायबिटीज में उपवास करना खतरनाक हो सकता है. इससे स्वास्थ्य से संबंधित कई समस्याएं हो सकती हैं. यह बेहद जरूरी है कि ऐसे लोग अपनी डायबिटीज टीम से सलाह के बाद ही उपवास रखें.”
डॉ फ्रैंकलिन जोसेफ कहते हैं कि कुछ अध्ययनों के मुताबिक इंसुलिन प्रतिरोध और टाइप 2 डायबिटीज़ से जूझ रहे व्यक्तियों में उपवास से इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता सुधर सकती है.
उपवास के दौरान कुछ लोगों का वज़न घट सकता है या शरीर के वसा में कुछ बदलाव हो सकता है. इन सबका इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता और मेटाबॉलिज्म पर असर पड़ सकता है, खासकर उन लोगों में जो मोटापे से जूझ रहे हैं.
फ्रैंकलिन जोसेफ बताते हैं कि हर व्यक्ति पर उपवास का असर अलग-अलग हो सकता है. इंसुलिन संवेदनशीलता और मेटॉबालिज्म पर उपवास का क्या प्रभाव होगा, ये व्यक्ति की ‘उम्र, लिंग, स्वास्थ्य, खानपान और उसकी शारीरिक गतिविधि जैसे कारकों पर निर्भर’ करता है.
वह कहते हैं, “डायबिटीज और मेटाबॉलिज्म की अन्य परेशानियों के साथ रमज़ान का उपवास रखने वालों के लिए यह जरूरी है कि वे अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें. चिकित्सक की सलाह के अनुसार उपवास रखें.”
अम्मान की पोषण विशेषज्ञ रीम अल-अब्दलत बेहतर स्वास्थ्य लाभ के लिए कहती हैं, “खाने की अच्छी आदतों को अपनाना बहुत ज़रूरी है. फिर चाहे आप इंटरमिटेंट फास्टिंग कर रहे हों या फिर रमज़ान का उपवास रख रहे हों.”

क्या इंसुलिन प्रतिरोध से जूझ रहे लोगों के लिए इंटरमिटेंट फास्टिंग फायदेमंद है?
इंटरमिटेंट फास्टिंग ने दुनिया भर में लोगों का ध्यान आकर्षित किया है. कई डॉक्टर और पोषण विशेषज्ञ इसके स्वास्थ्य लाभ की बात कर रहे हैं.
इसमें लंबे समय तक भूखा रहना, खाने की अवधि कम करना, हर हफ्ते पूरे दिन या फिर इससे अधिक समय तक खाना न खाना शामिल है.
डॉ. नितिन कपूर तमिलनाडु के वेल्लूर में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज यूनिवर्सिटी अस्पताल में एन्डोक्रनालजी (मधुमेह, मोटापा और थायरॉयड जैसे हार्मोनल विकारों का अध्ययन) के प्रोफेसर हैं.
डॉ. नितिन कपूर कहते हैं कि कुछ चिकित्सा शोध में पाया गया है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग से मेटाबॉलिज्म पर अच्छा असर पड़ता है. हालांकि, वो ये भी बताते हैं कि इंटरमिटेंट फास्टिंग सभी के लिए सही नहीं है और इसमें हर व्यक्ति के आधार पर आहार निर्धारित होना चाहिए.
साथ ही, वो किसी भी तरह की डाइट या फास्टिंग को लेकर कहते हैं, “क्या आप इसे पूरी ज़िंदगी कर सकते हैं? हो सकता है कि आप 15 किलो वज़न कम करना चाहें, लेकिन जब आप वो डाइट बंद कर देंगे, तो हो सकता है कि आपका वज़न दोबारा बढ़ जाए.”
प्रोफेसर फ्रैंकलिन जोसेफ कहते हैं कि ऐसे उपवास पर अभी शोध चल रहा है. कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि यह इंसुलिन संवेदनशीलता को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है.
वो उदाहरण देते हैं, “2015 में सेल मेटाबॉलिज्म जर्नल में प्रकाशित शोध में पाया गया कि जो लोग मोटापे से ग्रस्त नहीं हैं, उनमें हर दूसरे दिन के उपवास से शरीर के वज़न में बदलाव किए बिना इंसुलिन संवेदनशीलता में सुधार हुआ.”
वहीं इंटरमिटेंट फास्टिंग से वजन कम हो सकता है, जो इंसुलिन के प्रति संवदेनशीलता और मेटाबॉलिज्म में सुधार से जुड़ा है.

इंसुलिन रेजिस्टेंस के लक्षण
इंसुलिन प्रतिरोध के लक्षण शुरुआती दौर में कम दिखाई देते हैं. फिर भी कुछ लक्षण ऐसे हैं, जिनसे इसकी पहचान की जा सकती है.
प्रोफेसर जोसेफ के अनुसार इन लक्षणों में ज़्यादा भूख लगना, थकान, वजन कम करने में कठिनाई, त्वचा पर काले धब्बे (विशेष रूप से गर्दन, बगल या कमर के आसपास), उच्च रक्तचाप, उच्च ट्राइग्लिसराइड स्तर (कोलेस्ट्रॉल का खराब रूप), एचडीएल कोलेस्ट्रॉल का कम होना (कोलेस्ट्रॉल का अच्छा रूप) और पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) शामिल हैं.
वह कहते हैं कि अगर इंसुलिन प्रतिरोध के कारण टाइप 2 मधुमेह होता है और खून में शुगर का स्तर तेज़ी से बढ़ता है तो व्यक्ति को अन्य लक्षणों दिखाई दे सकते है. इसमें बार-बार पेशाब आना, अधिक प्यास लगना और धुंधला दिखाई देना शामिल है.
प्रोफेसर जोसेफ कहते हैं कि ये तमाम लक्षण और संकेत हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं और ये भी ज़रूरी नहीं है कि इंसुलित प्रतिरोध से जूझ रहे सभी लोग ये सारे लक्षण अनुभव करें.
साथ ही, ये लक्षण किसी दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं का भी संकेत हो सकते हैं, इसलिए डॉक्टर को दिखाना जरूरी है.
वो कहते हैं, “इंसुलिन प्रतिरोध का जल्द पता लगाना और उससे बेहतर तरीके से निपटना बेहद ज़रूरी है, ताकि टाइप 2 डायबिटीज़ और दिल से जुड़ी बीमारियों जैसी जटिलताओं से बचा जा सके.”

इससे कौन सी परेशानियां हो सकती हैं?
प्रोफ़ेसर जोसेफ कहते हैं कि अध्ययनों से पता चला है कि इंसुलिन प्रतिरोध वाले करीब 70 से 80 फीसदी व्यक्तियों का इलाज और प्रबंधन न किया जाए तो अंत में उन्हें टाइप 2 डायबिटिज़ हो जाता है.
वह कहते हैं, ” यह आनुवांशिकी, मोटापा, शारीरिक निष्क्रियता, आहार, उम्र और प्रजाति जैसे कई कारकों पर निर्भर करता है.”
वह आगे कहते हैं, “कुछ जातीय समूहों – विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया के लोगों में काकेशियन लोगों की तुलना में टाइप 2 डायबिटिज़ विकसित होने का खतरा अधिक है.”

ग्लाइसेमिक इंडेक्स क्या है?
ग्लाइसेमिक इंडेक्स एक ऐसा सिस्टम है, जिसके तहत खाने की चीज़ों को इस आधार पर बांटा गया है कि उन्हें खाने के बाद रक्त में शुगर की मात्रा कितनी तेज़ी से या धीमी गति से बढ़ती है.
ग्लाइसेमिक इंडेक्स से हम ये जान पाते हैं कि किसी खाद्य पदार्थ को खाने से हमारे रक्त में शुगर कितनी तेजी, मध्यम या फिर कम गति से बढ़ता है.
कार्बोहाइड्रेट, जो धीरे-धीरे टूटता है, उसे कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला माना जाता है. इसमें कुछ सब्जियां, फल, बिना मीठा दूध, फलियां और साबुत अनाज शामिल हैं.
वहीं चीनी, खाने और पीने की मीठी चीज़ें, सफेद आलू और सफेद चावल को उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाला माना जाता है. इनसे रक्त में शुगर की मात्रा तेज़ी से बढ़ती है.
हालांकि, खाने की कोई चीज़ सेहत के लिए अच्छी है या नहीं, यह सिर्फ ग्लाइसेमिक इंडेक्स से निर्धारित नहीं किया जा सकता है. उदाहरण के लिए कई चॉकलेट्स का ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, लेकिन इनमें कैलोरी अधिक होती है.
इसी तरह, यह भी ज़रूरी नहीं है कि उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाली खाने की चीज़ें खराब ही हों. जैसे तरबूज जैसे कई फलों का ग्लाइसेमिक इंडेक्स ज़्यादा होता है, लेकिन ये फल फायदेमंद होते हैं.
इसलिए हमारा ध्यान स्वस्थ और संतुलित आहार पर होना चाहिए.

क्या इंसुलिन प्रतिरोध को उलट सकते हैं?

प्रोफेसर जोसेफ कहते हैं, “जीवनशैली में बदलाव और, कुछ मामलों में दवा के माध्यम से इंसुलिन प्रतिरोध को उलटा या इसमें उल्लेखनीय सुधार किया जा सकता है.”
पोषण विशेषज्ञ रीम अल-अब्दलत कहती हैं, “इसमें आहार पर पूरा ध्यान देना चाहिए. मिठाई खाने से बचना चाहिए. स्टार्चयुक्त भोजन कम करना चाहिए.”
जोसेफ और अल-अब्दलत दोनों की सलाह है कि नियमित व्यायाम करना चाहिए. इससे वजन घटाने, विशेष रूप से पेट के आसपास की चर्बी कम करने में मदद मिल सकती है. इससे इंसुलिन के प्रति संवेदनशीलता में भी सुधार हो सकता है.
प्रोफेसर जोसेफ कहते हैं, इसमें बेहद तनाव पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है. वो कहते हैं, “ध्यान, योग, गहरी सांस लेने वाले व्यायाम या प्रकृति के साथ समय बिताने जैसे तरीकों से तनाव से निपटना फायदेमंद हो सकता है.”
अच्छी नींद लेना बहुत ही जरूरी है.
सबसे अंत में मेटफॉर्मिन जैसी दवाएं इंसुलिन प्रतिरोध और टाइप 2 डायबिटीज जैसी संबंधित स्थितियों को कम करने में मदद करती हैं. हालांकि, किसी दवा से इंसुलिन रेजिस्टेंस में कितनी मदद मिलेगी, इसके लिए डॉक्टर को दिखाकर सलाह लेना ज़रूरी है.