भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अब खतरे में दिखने लगी है। एक ओर जहाँ भारतीय संविधान ने हमें अपने विचार और राय व्यक्त करने का अधिकार दिया है, वहीं दूसरी ओर राजनेताओं और उनके समर्थकों द्वारा इस अधिकार पर लगातार हमले हो रहे हैं। ताजा मामला है प्रसिद्ध कॉमेडियन कुणाल कामरा के स्टैंड-अप शो से जुड़ा, जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके समर्थकों पर तीखे व्यंग्य किए थे। इस पर शिवसेना (एकनाथ शिंदे गुट) ने न सिर्फ विरोध किया, बल्कि मुंबई के एक कॉमेडी क्लब पर हमला भी बोल दिया।
राजनीतिक हमलों में फंसी कॉमेडी:
कुणाल कामरा ने अपने शो में शिंदे और उनके राजनीतिक करियर पर तीखा कटाक्ष किया था। उनके इस बयान ने एक ऐसा तूफ़ान मचाया, जिसके बाद शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने मुंबई के खार स्थित हैबिटेट कॉमेडी क्लब में तोड़फोड़ की और कामरा को धमकियाँ दीं। कामरा ने इस पर माफी मांगने से साफ इनकार किया और अपनी बात रखी कि जो उन्होंने कहा, वह किसी का अपमान नहीं था, बल्कि यह महज एक राजनीतिक व्यंग्य था।
शिवसेना का गुंडागर्दी वाला रवैया:
शिवसेना के नेताओं ने कुणाल कामरा को माफ़ी मांगने की धमकी दी। गुलाब रघुनाथ पाटिल, जो कि महाराष्ट्र सरकार में मंत्री हैं, ने कहा कि अगर कामरा माफी नहीं मांगते हैं, तो वे अपनी पार्टी के स्टाइल में उन्हें जवाब देंगे। यह बयान सीधे तौर पर धमकी देने जैसा था, जहां कामरा की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला किया गया। पाटिल ने यह भी कहा कि कामरा को अपनी जगह दिखाई जाएगी, और अगर वह छिपने की कोशिश करेंगे तो सरकार कुछ नहीं करेगी।
लोकतंत्र की हत्या – क्या भारत सच में लोकतांत्रिक देश है?
यह घटना केवल एक कॉमेडियन और एक राजनीतिक दल के बीच विवाद नहीं है, बल्कि यह भारत में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक गहरा हमला है। जब किसी नागरिक को अपनी बात रखने का अधिकार नहीं मिलेगा, तो क्या यह लोकतंत्र कहलाएगा? क्या भारत सच में एक लोकतांत्रिक देश है, जहाँ हर किसी को अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार नहीं है? शिंदे और उनके समर्थकों द्वारा की गई इस गुंडागर्दी ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि देश में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में हैं।

कुणाल कामरा ने एक बयान जारी किया है.
कॉमेडियन का साहस – कामरा ने बुलाई ‘नमूने’ की आलोचना
कुणाल कामरा ने साफ शब्दों में कहा कि उन्होंने वही कहा जो अजित पवार ने शिंदे के बारे में कहा था। कामरा ने कहा कि वह इस मामले को शांत करने के लिए बिस्तर के नीचे नहीं छिपेंगे और न ही डरकर माफी मांगेंगे। उन्होंने अपनी बात में यह भी कहा कि कॉमेडी शो का मंच हर प्रकार के शो का स्थल होता है और उस पर किसी की भी बात करने का अधिकार किसी भी राजनीतिक दल या समूह का नहीं है। यह बयान सीधे तौर पर यह दिखाता है कि कामरा डरने वाले नहीं हैं, और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को पूरी तरह से कायम रखने की कोशिश करेंगे।

शिवसेना का तानाशाही रवैया – सत्ता के मद में चूर नेता
शिवसेना (शिंदे गुट) और उनके समर्थकों का यह व्यवहार तानाशाही की ओर इशारा करता है। जब किसी ने एक मजाक किया, तो क्यों सत्ता में बैठे नेताओं को इतना तकलीफ हुई? क्या यह सत्ता का अहंकार नहीं है कि वे अपनी आलोचना सहन नहीं कर सकते? जिस लोकतंत्र की हम बात करते हैं, क्या वह केवल उन्हीं के लिए है जो सरकार के पक्ष में हैं? जिन लोगों की आलोचना होती है, क्या उन्हें चुप कराने का हक सत्ता में बैठे नेताओं को है?
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता – संविधान पर हमला
देश के तमाम बुद्धिजीवियों, पत्रकारों और नेताओं ने इस घटना को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है। वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने लिखा कि यदि मोदी सरकार सच में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का समर्थन करती है, तो क्या वह कामरा के मामले में किसी की आवाज़ उठाएगी? प्रशांत भूषण जैसे प्रमुख वकील ने इस पूरे घटनाक्रम को दर्शाया और कहा कि यह दिखाता है कि किस तरह से हल्के मज़ाक को भी सत्ता में बैठे लोग गंभीरता से लेते हैं और उस पर अपनी गुंडागर्दी का प्रयोग करते हैं।

पुलिस और सरकार की निष्क्रियता – क्या कानून का उल्लंघन नहीं हुआ?
जब शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने कॉमेडी क्लब पर हमला किया, तो पुलिस ने उनकी गिरफ्तारी तो की, लेकिन क्या यह हमला भारतीय संविधान और क़ानून के खिलाफ नहीं था? क्या यह तानाशाही नहीं है जब एक राजनीतिक पार्टी के समर्थक अपनी सत्ता और ताकत का दुरुपयोग करके किसी को डराने-धमकाने का काम करें? इस घटनाक्रम ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है कि क्या सरकार सच में क़ानून और संविधान का पालन करने में सक्षम है, या फिर वे भी सत्ता के मद में चूर हैं?
मीडिया की जिम्मेदारी – क्या हम सच में लोकतंत्र में जी रहे हैं?
मीडिया का यह कर्तव्य बनता है कि वह इस पूरी घटना की निष्पक्षता से रिपोर्टिंग करे और इसे लोकतंत्र की हत्या के रूप में प्रस्तुत करे। आज भारत में प्रेस की स्वतंत्रता पर गंभीर खतरे हैं, और इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि आज की सरकार और सत्ता का नशा किस हद तक फैल चुका है।

कुणाल कामरा पहले भी विवादों में रहे हैं और अर्नब गोस्वामी से उनके विवाद के बाद इंडिगो ने उन पर छह महीने का बैन लगा दिया था.
सिस्टम की हकीकत – क्या राजनीति से परे कुछ भी बचा है?
आज भारत की राजनीति में वह सब कुछ हो रहा है, जो एक लोकतांत्रिक देश में नहीं होना चाहिए। नेताओं के समर्थकों द्वारा गुंडागर्दी और धमकी देने से यह साफ हो गया है कि हमारे देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों का बचाव कोई नहीं कर रहा।
अगर इस स्थिति में कोई आवाज़ उठाने वाला है, तो वह बस कुणाल कामरा जैसे लोग हैं, जो साहस दिखाकर सत्ता के खिलाफ बोल रहे हैं। अब सवाल यह है कि क्या हम सभी को इस सत्ता के आतंक के खिलाफ एकजुट होकर अपनी आवाज़ उठानी चाहिए, या हम अपनी चुप्पी से इस लोकतंत्र को और खो देंगे?