दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार अरविंद केजरीवाल के लिए राजनीतिक झटका तो है ही लेकिन नई दिल्ली विधानसभा सीट से ख़ुद हार जाना और निराशाजनक है.
अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा सीट से पहली जीत 2013 में कांग्रेस की दिग्गज नेता और तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराकर हासिल की थी और तब से लगातार जीतते रहे. लेकिन 2025 के विधानसभा चुनाव में उन्हें बीजेपी के प्रवेश वर्मा ने 4089 मतों से मात दी.
प्रवेश वर्मा को कुल 30,088 वोट मिले और अरविंद केजरीवाल को 25,999 वोट मिले. तीसरे नंबर पर कांग्रेस के संदीप दीक्षित रहे, जिन्हें कुल 4,568 वोट मिले. अगर कांग्रेस नई दिल्ली से अपना कोई उम्मीदवार नहीं खड़ी करती और संदीप दीक्षित को मिले वोट अरविंद केजरीवाल के पक्ष में जाते तो यहाँ के नतीजे कुछ और होते.
2020 के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली विधानसभा सीट पर बीजेपी के सुनील कुमार यादव की तुलना में लगभग दोगुने वोट (61.1%) मिले थे. वहीं पिछले चुनाव की तुलना में अरविंद को इस बार क़रीब 19 प्रतिशत कम वोट मिले हैं.
लेकिन जब अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली विधानसभा सीट से जीत रहे थे, तब भी लोकसभा चुनाव में इस इलाक़े के वोटर आम आदमी पार्टी को वोट नहीं कर रहे थे.

केजरीवाल के साथ मतदाता प्रतिबद्ध नहीं
2014 के लोकसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की विधानसभा सीट नई दिल्ली में आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर थी. 2019 के लोकसभा चुनाव में तो नई दिल्ली विधानसभा सीट के मतदाताओं ने आम आदमी पार्टी को तीसरे नंबर पर रखा था.
2024 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन था और नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में इस गठबंधन को बीजेपी से ज़्यादा वोट मिले थे. 2024 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली के 70 विधानसभा क्षेत्रों में से 18 पर कांग्रेस और आप गठबंधन को बीजेपी से ज़्यादा वोट मिले थे.
इन आँकड़ों से पता चलता है कि नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र के वोटर आम आदमी पार्टी या अरविंद केजरीवाल को लेकर कभी भी एकनिष्ठ नहीं रहे हैं. बल्कि विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के काम के कारण साथ रहे थे.

2014 के लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 29.3 प्रतिशत था और कांग्रेस का 22.8 प्रतिशत जबकि बीजेपी को 43.8 प्रतिशत लोगों ने वोट किया था.
लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली विधानसभा सीट पर 64.1 प्रतिशत लोगों ने वोट किया था, कांग्रेस को 5.4 फ़ीसदी लोगों ने और बीजेपी का वोट शेयर 28.1 फ़ीसदी था.
इसी तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी का वोट शेयर आप की तुलना में क़रीब ढाई गुना से भी ज़्यादा था. आम आदमी का पार्टी का वोट शेयर 14.1%, कांग्रेस का 34.1%, और बीजेपी का वोट शेयर 49.8 प्रतिशत था. यानी आप तीसरे नंबर पर थी.
2024 के लोकसभा चुनाव में नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को बीजेपी से ज़्यादा वोट मिले थे. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के गठबंधन को यहां 50 फ़ीसदी से भी ज़्यादा वोट मिले थे और बीजेपी को 46.8 प्रतिशत वोट मिले थे.

वोटर की संख्या कम होने का असर?
आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने 29 दिसंबर को आरोप लगाया था कि बीजेपी उनके विधानसभा क्षेत्र नई दिल्ली से बड़ी तादाद में मतदाताओं के नाम कटवा जा रही है.
अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि आप समर्थकों के नाम हटाए जा रहे हैं और बीजेपी समर्थकों के जोड़े जा रहे हैं. तब चुनाव आयोग ने कहा था कि उन वोटरों के नाम हटाए जा रहे हैं, जो या तो दिल्ली से कहीं और के वोटर बन गए या दूसरे विधानसभा क्षेत्रों के वोटर लिस्ट में भी उनके नाम हैं.
नई दिल्ली विधानसभा सीट को लेकर कई तरह के दावे और प्रतिदावे किए जा रहे थे. 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव की तुलना में नई दिल्ली विधानसभा सीट उन 12 सीटों में से एक है, जहाँ इस बार मतदाताओं की संख्या कम हुई है.
इसके साथ ही नई दिल्ली उन दो विधानसभा सीटों में से एक है, जहाँ इस बार के चुनाव में 20 प्रतिशत से ज़्यादा मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए थे. दूसरी विधानसभा सीट है दिल्ली कैंट. आप को दिल्ली कैंट में जीत मिली और नई दिल्ली में हार.

2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में कुल वोटरों की संख्या 146,122 थी जो 2025 के विधानसभा चुनाव में घटकर 108,574 हो गई. यानी 37,548 मतदाताओं के नाम हटाए गए. क्या इसका असर चुनावी नतीजे पर भी पड़ा है?
इस बार केजरीवाल को नई दिल्ली विधानसभा सीट पर कुल 25,999 वोट मिले हैं, जो कि 2020 के विधानसभा चुनाव की तुलना में 20,759 वोट कम हैं. वहीं इस बार बीजेपी को 30,088 वोट मिले जो कि 2020 की तुलना में 5027 वोट ज़्यादा हैं. कांग्रेस को 2020 की तुलना में 1,348 वोट ज़्यादा मिले. यानी केजरीवाल को जो वोट पिछली बार ज़्यादा मिले थे, वे कांग्रेस और बीजेपी दोनों में शिफ़्ट हुए हैं.
2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 के विधानसभा चुनाव के बीच नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में वोटरों की संख्या 2,209 बढ़ी है. लेकिन 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव के बीच नई दिल्ली विधानसभा सीट पर वोटरों की संख्या में 27.2 फ़ीसदी की कमी आई है.

कांग्रेस से अलग होने का असर
इसके बावजूद 2024 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन को बीजेपी से नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में ज्यादा वोट मिले थे. ऐसे में ये कहना बहुत तार्किक नहीं लगता है कि अरविंद केजरीवाल वोटरों की संख्या कम होने से हार गए. ये भी ज़रूरी नहीं है कि जिन वोटरों के नाम हटाए गए, वे मतदान करते ही और अगर करते तो केजरीवाल के पक्ष में ही करते.
नई दिल्ली विधानसभा सीट दिल्ली के उन इलाक़ों में है, जहाँ चीज़ें बहुत व्यवस्थित हैं और ज़्यादातर सरकारी कर्मी रहते हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में ये सरकारी कर्मी केजरीवाल के साथ होते थे लेकिन इस बार इसमें बीजेपी सेंध लगाने में कामयाब रही. चुनाव से ठीक पहले ही आम बजट पेश हुआ था और मोदी सरकार ने मध्य वर्ग को राहत देते हुए सालाना 12 लाख की सैलरी पर कोई भी इनकम टैक्स नहीं लेने की घोषणा की थी.
सेंटर फोर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी में प्रोफ़ेसर संजय कुमार भारत की चुनावी राजनीति पर गहरी नज़र रखते हैं. उनका मानना है कि केजरीवाल की हार उन्हीं की गढ़ी गई छवि में आई नाटकीय गिरावट आम आदमी पार्टी की हार की मुख्य वजह रही.

संजय कुमार कहते हैं, ”अरविंद केजरीवाल ने अपने मानदंड बहुत ऊंचे रखे थे और इसी में फँस गए. जो मानदंड उन्होंने तय किए थे, वह हक़ीक़त की ज़मीन पर कहीं से भी खरी नहीं थी. जैसे कि ईमानदार राजनीति, लो प्राफाइल, पार्टी के भीतर लोकतंत्र, उम्मीदवारों के चयन में जनभागीदारी, पारदर्शिता और सांप्रदायिकता से समझौते नहीं.”
“लेकिन पिछले कुछ सालों में केजरीवाल की राजनीति इन मानदंडों के बिल्कुल उलट जा रही थी. मुझे लगता है कि नई दिल्ली में उनकी हार की बड़ी वजह उनकी छवि में आई गिरावट के कारण ही हुई है.”
संजय कुमार को लगता है कि अरविंद केजरीवाल में बहुत अहंकार भी आ गया था.
संजय कुमार कहते हैं, ”दिल्ली में चुनाव से पहले ही आम आदमी पार्टी ने घोषणा कर दी कि कांग्रेस से कोई समझौता नहीं होगा. यह बातचीत का दरवाज़ा बंद करने की तरह था. अब केजरीवाल को अहसास हो रहा होगा कि कांग्रेस के साथ साझेदारी होती तो स्थिति कुछ और होती. दिल्ली में तो देने और खोने के लिए आम आदमी पार्टी के पास ही था. ऐसे में झुकना तो आम आदमी पार्टी को ही चाहिए था.”
अरविंद केजरीवाल ने हार के बाद कहा था, ”जनता के निर्णय को हम स्वीकार करते हैं. भारतीय जनता पार्टी को मैं बधाई देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि बीजेपी ने जो वादे किए हैं, उन पर खरे उतरेगी.”