राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के एक साल बाद अयोध्या शहर बदला-बदला नज़र आने लगा है.
उत्तर प्रदेश को धार्मिक पर्यटन का केंद्र बनाने की योगी आदित्यनाथ सरकार की महत्वाकांक्षी योजना में अयोध्या सबसे महत्वपूर्ण है. लिहाजा, शहर में काम तेज़ी से चल रहा है.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मुताबिक, हर दिन अयोध्या में डेढ़ से दो लाख श्रद्धालु आ रहे हैं.
अयोध्या में क्या चल रहा है?

राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के एक साल बाद शहर में अब भी काम चल रहा है.
जगह-जगह खुदाई और सड़कों को चौड़ा किया जा रहा है. राम मंदिर में भी काम चल रहा है.
धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्यटन विभाग ने 12.41 करोड़ रुपए का अलग से प्रस्ताव किया है.
‘राम पथ’ के बाद ‘भक्ति पथ’ का भी निर्माण चल रहा है. रेलवे स्टेशन का नवीनीकरण किया जा रहा है. तकरीबन 15 नई ट्रेनें अयोध्या से गुज़र रही हैं.
अयोध्या से रोज़ाना 12 फ़्लाइट्स चल रही हैं. जिनमें दिल्ली, अहमदाबाद, मुंबई और बेंगलुरू के लिए रोज़ाना फ़्लाइट्स हैं.
एयरपोर्ट टर्मिनल इंचार्ज के दफ़्तर ने बताया कि हैदराबाद के लिए हफ़्ते में चार दिन फ़्लाइट्स हैं. लेकिन, कुछ फ़्लाइट्स बंद भी हुई हैं. इनमें जयपुर, दरभंगा और पटना की फ्लाइट्स शामिल हैं.

मनीष कुमार राम मंदिर के दर्शन के लिए कनाडा से आए हैं. मनीष कुमार का कहना है कि उनका अनुभव अच्छा था, लेकिन फ़्लाइट लेट थी.
अंबाला से रुचि शर्मा यहाँ का विकास देखने आई हैं. रुचि शर्मा ने बताया कि वह ये देखने आई हैं कि कितना विकास हुआ है.
अयोध्या की रहने वाली सुनीता शर्मा का कहना है कि अब इतना विकास हो गया है कि वो ख़ुद रास्ता भूल जाती हैं.
हिंदू पंचांग के मुताबिक़, 11 जनवरी को ही राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का एक साल पूरा हो गया.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मौक़े पर एक सभा में कहा था कि अयोध्या, अब अयोध्या होने का अहसास कराती है.
उनका दावा है कि अयोध्या विकास के नक्शे पर उभर रहा है, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है.
दूसरा पहलू

पत्रकार इंदू भूषण पांडेय कहते हैं कि सिर्फ़ तीन किलोमीटर के दायरे में विकास हुआ है.
उन्होंने कहा, “अयोध्या नगर के बाहर, फैज़ाबाद के पुराने शहर में कोई तब्दीली नहीं दिखाई दे रही है.”
इसके अलावा ज़मीन अधिग्रहण और मुआवज़े को लेकर स्थानीय लोगों की शिकायतों की फ़ेहरिस्त काफ़ी लंबी है.
अयोध्या में विकास कार्य की दलील देते हुए सरकार, अधिग्रहण के रास्ते से लगातार नई ज़मीन तलाश रही है. लेकिन, सरकार की अधिग्रहण की नीति कई लोगों के गले नहीं उतर रही है.
बहुत से स्थानीय ज़मीन मालिक और किसान ऐसे हैं, जो अयोध्या का विकास तो चाहते हैं लेकिन अपनी ज़मीन की क़ीमत पर नहीं.
कुछ लोगों की शिकायत है कि उनकी ज़मीन ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से छीनी जा रही है और पर्याप्त मुआवज़ा भी नहीं दिया जा रहा.
समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेता और पूर्व मंत्री पवन पांडेय ने आरोप लगाया है कि बीजेपी सरकार किसानों की ज़मीन बेहद कम दामों पर लेकर ”अपने पूंजीपति मित्रों को दे रही है.”
उन्होंने कहा, “सरकार के इस रवैये से किसानों का जीवन संकट में पड़ गया है. उनका घर कैसे चलेगा? सरकार को चाहिए कि किसानों को उनकी ज़मीन का मुआवज़ा बाज़ार भाव के आधार पर दे, क्योंकि 2017 से सर्किल रेट में कोई बदलाव नहीं हुआ है.”
दूसरी ओर प्रशासन की दलील है कि अधिग्रहण की प्रक्रिया मानकों के अनुसार पूरी की जा रही है और इसका फायदा आख़िरकार स्थानीय लोगों को ही पहुँच रहा है.
अयोध्या में ज़मीन अधिग्रहण एक बड़ा मसला

बीबीसी की टीम ने अयोध्या और उसके आसपास के कुछ गाँवों का दौरा किया और ज़मीन अधिग्रहण पर स्थानीय लोगों और किसानों की राय जानने की कोशिश की.
हमारे सवाल पर कई स्थानीय लोगों का ग़ुस्सा फूट पड़ा. उनका आरोप है कि इस विकास में अयोध्या के लोग पीछे छूटते जा रहे हैं.
हमारी मुलाक़ात अयोध्या के सआदतगंज में रहने वाली पूजा वर्मा से हुई. वह अपनी व्यथा सुनाते हुए कई बार रो पड़ीं. पूजा वर्मा अपने दो बच्चों के साथ किराए के घर में रहती हैं.
कोरोना महामारी के दौरान उनके पति की मौत हो गई थी.
पति की मौत के बाद उन्होंने माझा शहनवाज़पुर में एक प्लॉट लिया था. लेकिन, आवास-विकास अब उस प्लॉट के अधिग्रहण की तैयारी कर रहा है.
पूजा का कहना है कि उन्होंने बाज़ार भाव में प्लॉट लिया था, लेकिन आवास विकास परिषद सर्किल रेट पर अधिग्रहण कर रहा है.
पूजा वर्मा ने बीबीसी से कहा, “हमारी ज़मीन की क़ीमत छह लाख रुपए लगाई गई है, जबकि मार्केट रेट 48 लाख रुपए प्रति बिस्वा है. हमें मार्केट रेट से पैसा दिया जाए या फिर उसका अधिग्रहण ना किया जाए. हमने कई बार आरटीआई भी डाली, तो आवास विकास परिषद ने कहा कि ये ज़मीन अधिग्रहण से बच नहीं सकती.”

बीबीसी की टीम सच्चाई जानने के लिए अयोध्या के माझा शहनवाज़पुर पहुँची.
ग्रामीणों ने बीबीसी को बताया कि परिषद पहले ही इस गाँव से 1,450 एकड़ ज़मीन ले चुका है.
अब अतिरिक्त 450 एकड़ ज़मीन का अधिग्रहण किया जा रहा है, लेकिन अधिग्रहित की जा रही ज़मीनों की क़ीमत बाज़ार भाव से नहीं दी जा रही है.
इसी गाँव के रहने वाले राजीव अमेरिका में एक सॉफ़्टवेयर इंजीनियर थे. उन्होंने 2004 में अयोध्या के शहनावज़पुर में 84 बिस्वा ज़मीन ख़रीदी थी.
राम मंदिर का निर्माण शुरू होने पर राजीव अमेरिका की अपनी नौकरी छोड़कर भारत आ गए.
राजीव तिवारी ने बताया, “हमने सोचा था होटल बनाएँगे. हमें एनओसी भी मिली है. लैंड यूज़ भी चेंज करा लिया है, लेकिन अब आवास विकास एनओसी नहीं दे रहा है. ये ज़मीन अधिग्रहण क़ानून का उल्लंघन है.”
राजीव तिवारी का आरोप है कि परिषद पहले की अधिग्रहित ज़मीनों तक का उपयोग नहीं कर रहा है. इसके बावजूद और ज़मीनें लेकर सिर्फ़ बड़े कारोबारियों को बेचा जा रहा है.
माझा शहनवाज़पुर के कुछ लोगों का आरोप है कि अयोध्या के विकास में अयोध्यावासी ही पीछे छूटते जा रहे हैं और आवास विकास किसानों की ज़मीन कम पैसे में अधिग्रहित कर रहा है और ऊँची क़ीमतों पर बेच रहा है.
कुछ इस तरह की पीड़ा गगन जायसवाल की भी है. उन्होंने बताया, “सोचा था कि कोई काम करूँगा, कोई छोटा-मोटा होटल या ढाबा खोलूँगा, लेकिन अब ऐसा नहीं हो पा रहा है.”
“इस इलाक़े में ज़मीन की क़ीमत 48 लाख रुपए बिस्वा है, लेकिन आवास विकास परिषद हमें सिर्फ़ पाँच लाख रुपए बिस्वा दे रहा है. जबकि यही ज़मीनें बड़े बिज़नेस वालों को एक करोड़ रुपए बिस्वा में बेची जा रही हैं.”
स्थानीय किसान मंजीत यादव का कहना है कि गाँव की आबादी को ज़मीन पर भी पक्के घर बनाने से रोका जा रहा है. उनका भी आरोप है कि परिषद भूमि अधिग्रहण क़ानून का उल्लंघन कर रहा है.
बीबीसी ने इस आरोप पर बीजेपी के स्थानीय विधायक वेद गुप्ता से बात की तो उन्होंने कहा कि क़ानून के हिसाब से ही मुआवज़ा दिया जा रहा है और सर्किल रेट से तीन गुना तक मुआवज़ा दिया जा रहा है.
स्थानीय विधायक का दावा है कि सरकार ने राम पथ बनने के दौरान टूटी दुकानों और मकानों तक का मुआवज़ा दिया है.
बीजेपी विधायक वेद गुप्ता का कहना है कि वर्तमान सरकार ने अयोध्या में जैसा विकास किया है, वैसा विकास अब तक किसी ने नहीं किया.
उन्होंने कहा कि वो ख़ुद 1974 से यहाँ रह रहे हैं और इससे पहले की सभी सरकारों ने अयोध्या की अनदेखी की है.
उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद का क्या कहना है?

उत्तर प्रदेश आवास विकास परिषद के आवास आयुक्त डॉ. बलकार सिंह बीबीसी हिंदी से कहते हैं कि राम मंदिर के निर्माण के बाद अयोध्या में लोगों की ज़रूरतें बढ़ गई हैं.
होटल और आवास की मांग तेज़ी से बढ़ रही है, जिसकी वजह से माझा शहनावज़पुर में आवास विकास परिषद दो चरणों में 1700 एकड़ ज़मीन ले रहा है.
आवास आयुक्त ने बताया कि इसके अलावा राज्य सरकारें भी स्टेट भवन और अन्य निर्माण कार्यों के लिए ज़मीन ले रही हैं.
ग्रीन फील्ड प्रोजेक्ट के तहत महाराष्ट्र और उत्तराखंड ने ज़मीन अधिग्रहण किया है, जबकि राजस्थान और पूर्वोत्तर राज्यों ने भी ज़मीन अधिग्रहण के प्रस्ताव भेजे हैं.

बलकार सिंह ने दावा किया कि आवास विकास परिषद सर्किल रेट के चार गुना तक मुआवज़ा दे रहा है.
हालांकि, ज़मीन की कीमत तय करने का काम आवास विकास परिषद का नहीं है. यह ज़िम्मेदारी ज़िले के लैंड एक्यूज़ीशन ऑफ़िसर और कलेक्टर की होती है.
गांव वालों के आरोपों पर उन्होंने कहा कि किसानों को गुमराह किया जा रहा है.
उन्होंने कहा, “किसानों को लगता है कि फ्रंट की ज़मीन का रेट उनके हिस्से की ज़मीन के लिए भी मिलना चाहिए. लेकिन, शासकीय संस्था होने के नाते हम 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत काम कर रहे हैं.”
परिषद एक हेक्टेयर ज़मीन के लिए लगभग 4.5 करोड़ रुपए का मुआवज़ा दे रहा है.
वह कहते हैं, “फिर भी अगर किसान को मुआवज़े में आपत्ति है, तो वे न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं.”
नज़ूल की ज़मीन पर भी विवाद

अयोध्या और आसपास के इलाक़ों में नज़ूल की ज़मीन और मुआवज़े पर भी विवाद चल रहा है.
यूपी में लगभग 25 हज़ार हेक्टेयर ज़मीन नज़ूल की है, जिसको आमतौर पर लीज़ पर दिया जाता है.
ये किसी व्यक्ति को या संस्था को दिया जाता है. इन ज़मीनों पर लोग सालों साल से रह रहे हैं. ये लोग इस उम्मीद में हैं कि एक दिन ये फ्री होल्ड हो जाएगी.
दरअसल, आज़ादी से पहले ब्रिटिश हुक़ूमत किसी की भी ज़मीन ज़ब्त कर लेती थी, जिसमें राजा से लेकर छोटे आदमी तक हो सकते थे, लेकिन आज़ादी के बाद जो लोग इसके मालिकाना हक़ के कागज़ नहीं दिखा पाए वो ज़मीन सरकार की हो गई.
बीबीसी की टीम माझा जमथरा पहुँची, जो राम मंदिर से एक किलोमीटर की दूरी पर है.
जब हम वहाँ पहुँचे, तो अफ़सरों की निगरानी में ज़मीन की नपाई हो रही थी.
इस खेत पर गेहूँ की फसल खड़ी थी. सरकारी अधिकारी पुलिस की मौजूदगी में खंभे गड़वा रहे थे. लेकिन गाँव वालों की अफ़सरों से बहस भी हो रही थी.
गाँव वालों की दलील थी कि नापी जा रही ज़मीन खेवट यानी भूमिधरी की ज़मीन है. इस पर वो पुरखों के समय से खेती कर रहे हैं, लेकिन सरकार की ओर से कहा जा रहा था कि ये नज़ूल की ज़मीन है.
स्थानीय किसान मनीराम यादव ने बीबीसी को बताया, “हम कई पीढ़ियों से इस पर खेती कर रहे हैं, लेकिन प्रशासन कह रहा है कि इस पर हमारा अधिकार नहीं है. अगर कोई अधिकार नहीं बनता, तो खतौनी में ये अमल में क्यों नहीं लाया जा रहा है. सिर्फ़ प्रताड़ित कर रहे हैं.”
मौक़े पर मौजूद एसडीएम ने कहा कि नापी जा रही ज़मीन पर किसानों का कोई हक़ नहीं बनता है.
एसडीएम विकासधर दुबे ने बीबीसी को बताया, “गाटा संख्या 57 की ज़मीन सरकार ले रही है, जिसमें 517 एकड़ ज़मीन नज़ूल की है. पहले ये लोग पट्टेदार थे, लेकिन 2014 में पट्टा ख़ारिज कर दिया गया था. इन लोगों को पहले बताया गया था, लेकिन किसी ने अपनी मिल्क़ियत के कोई क़ानूनी कागज़ नहीं दिखाए हैं.”
मुआवज़े के सवाल पर एसडीएम का कहना था कि मुआवज़े में ये नहीं है कि ज़मीन के बदले ज़मीन दी जाएगी, क्योंकि ये सरकारी ज़मीन है.
समाजवादी पार्टी के स्थानीय पार्षद राम अंजोर यादव का कहना है कि यहाँ पर लोग पुरखों के वक़्त से खेती कर रह रहे हैं.
उन्होंने कहा कि सरकार के पास भी बेदखली के रिकार्ड नहीं हैं, सिर्फ़ मनमानी की जा रही है.
स्थानीय पत्रकार इंदूभूषण पांडेय कहते हैं, “पुराने शहर में अभी भी सीवेज का पानी सड़कों पर बह रहा है. गलियां टूटी-फूटी हैं, सिर्फ़ बाहर से चमकाया जा रहा है.”
“अयोध्या पहले धाम था, अब यहाँ सिर्फ़ व्यवसाय करने वाले लोग आ रहे हैं. यहाँ के लोगों को रोज़गार भी नहीं मिल पा रहा है, क्योंकि सिर्फ़ बड़े होटल बनाए जा रहे हैं. बड़े व्यवसायियों को लाभ मिल रहा है.”
उनका कहना है कि विकास सिर्फ़ अयोध्या के आसपास हो रहा है.